डॉ• हरदीप कौर सन्धु
विभाग के मुखिया का कमरा
खुला हवादार और शांत। आज पहले ही दिन मुखिया की गैर मौजूदगी में मेरा उसके कमरे
में जाने का सबब बना। खुली खिड़की से बाहर देखते कादर (कुदरत को रचने वाला) की सृष्टि
का अजब नज़ारा मेरी रूह को ताज़गी दे गया। मगर
जैसे ही मेरी घूमती हुई नज़र उसकी मेज़ पर पड़ी, यह सलीके के सत्यानाश की एक कुरूप
उदाहरण लगी। मेज़ पर पड़ा घमासान मेरी सोच को बिखेरता हुआ लगा। अब
बदहवास हुई हवा में आती साँसों में मन अशांत हो गया।
उसकी
बदरंग सी मेज़ पर सभी कुछ बिखरा था। लगता था कि उसने कभी
सलीके की एक घूँट तक नहीं भरकर देखी होगी।
मेज़ पर बिखरी कॉफी की मिठास से जुड़े कागज़, रसीदें, परीक्षा की कॉपियाँ,बिखरी पुस्तकें। इन पर से सरकती
हुई मेरी नज़र आधी खाली, गिरी हुई पानी वाली बोतल, टॉफी के पन्ने, टूटे हुए खाली
डिब्बों से होती हुई मेज़ पर पड़ी खिड़की की टूटी हुई लकड़ी पर आ टिकी। तीन -चार खाली
चाय वाली प्यालियों में पड़े टूटे -फूटे पैन -पेंसिलें किसी तरतीब की इंतज़ार में
लगे। आधी -खुली दराज़ में से गिरते हुए कागज़ किन्हीं अनुकूल
हाथों के स्पर्श को तरस रहे थे।
इसी बेतरतीब बिखराव में से मुझे उसका अक्स अब साफ दिखाई दे रहा था। किसी वस्तु को व्यवस्थित करके रखने का मोह तो शायद उसमें कभी पनपा ही नहीं होगा। उसकी मेज़ किसी कबाड़खाने से कम नहीं थी। कभी ये मुझे उसके व्यस्त होने का दिखावा करने की आदत का प्रतीक लगा तो कभी उसके भीतर चल रहे घमासान का सूचक।मेरी सोच में उभर के आई उसकी तस्वीर,उसके असली व्यक्तित्व से तब जा मिली जब एक साथी ने उसके गुस्सैल, अड़ियल, रूखे, आत्मकेन्द्रित और खुदगर्ज़ स्वभाव होने की पुष्टि की थी। कहते हैं कि प्रकृति के शिष्टाचार में भी बेपरवाही, बेताल तथा घमासान का कोई स्थान नहीं है। तो फिर ऐसे निर्मोही से लियाकत की कमी वाले घामड़ व्यक्ति का अक्स ऐसा ही तो होगा। मैंने खुली खिड़की से एक बार फिर बाहर देखा। सूर्य की मद्धिम लाली में शृंगार किए वृक्ष मुझे सलीके तथा शिष्टाचार का करिश्मा लगे।
इसी बेतरतीब बिखराव में से मुझे उसका अक्स अब साफ दिखाई दे रहा था। किसी वस्तु को व्यवस्थित करके रखने का मोह तो शायद उसमें कभी पनपा ही नहीं होगा। उसकी मेज़ किसी कबाड़खाने से कम नहीं थी। कभी ये मुझे उसके व्यस्त होने का दिखावा करने की आदत का प्रतीक लगा तो कभी उसके भीतर चल रहे घमासान का सूचक।मेरी सोच में उभर के आई उसकी तस्वीर,उसके असली व्यक्तित्व से तब जा मिली जब एक साथी ने उसके गुस्सैल, अड़ियल, रूखे, आत्मकेन्द्रित और खुदगर्ज़ स्वभाव होने की पुष्टि की थी। कहते हैं कि प्रकृति के शिष्टाचार में भी बेपरवाही, बेताल तथा घमासान का कोई स्थान नहीं है। तो फिर ऐसे निर्मोही से लियाकत की कमी वाले घामड़ व्यक्ति का अक्स ऐसा ही तो होगा। मैंने खुली खिड़की से एक बार फिर बाहर देखा। सूर्य की मद्धिम लाली में शृंगार किए वृक्ष मुझे सलीके तथा शिष्टाचार का करिश्मा लगे।
संध्या की बेला
सूर्य लालिमा संग
सिंदूरी पत्ते।
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18 टिप्पणियां:
डॉ०हरदीप जी ! हाइबन के माध्यम से मानव व प्रकृति का सामंजस्य दिखाते हुए प्रकृति को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करते आपके भावों ने यथार्थ जीवन की सत्यता का अवलोकन करवाया।
बहुत खूब !! शब्दों एवं भावनाओं का तालमेल!!!
हरदीप जी, आपकी कलम से निकले शब्द तो अपने में ऐसे जकड लेते हैं कि बहुत देर तक उनसे बाहर निकल पाना मुमकिन नहीं होता |
बहुत पसंद आया आपका लिखा यह खूबसूरत हाइबन...मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें...|
behad sundar! Dr. Sandhu shubhkamnaayen!
हाइबन का सुंदर शब्द चित्र खींचा , शैली उतकृष्ट , अनुसाशन - व्यवस्थित रहने की सीख दे रहा है .
बधाई…|
बहुत पैनी तूलिका से शब्दों की स्याही में भिगो कर शब्दचित्र रचा है आपने | आँखों के सामने सब दृश्य मूर्त हो गया | बधाई आपको |
शशि पाधा
हाइबान के माध्यम से एक ओर परिष्कृत परिवेश में पले -बढ़े प्रकृति के अंग की सुंदरता, शांति तथा नम्रता की गरिमा संभाले मन को मोहते वृक्ष,दूसरी ओर अपने कार्यों, अपने हाव -भाव से मन में वितृष्णा जगाते इन्सान का तुलनात्मक चित्रण किसी व्यक्ति का ही नहीं वास्तव में हर स्वाभिमानी -आत्मकेन्द्रित ,अव्यवस्थित व्यक्ति का पूरा ख़ाका है | सुंदर तुलनात्मक कसौटी पर खरे उतरते हाइबन हेतु बहन संधु जी को बधाई |
पुष्पा मेहरा
बहुत सुन्दर चित्रण किया है हरदीप जी आपने अपने हाइबन में .पूरा दृश्य आँखों के सामने दृश्यमान हो गया .हार्दिक बधाई.
sundar..badhai..
Office culture in bad order
बहुत ही सुन्दर.....हार्दिक बधाई हरदीप जी!
पूरा दृश्य आँखों के सामने दृश्यमान हो गया.बहुत ही सुन्दर.....हार्दिक बधाई हरदीप जी!!!
अद्धभुत भाषा शैली के साथ मन को बांधे रखने वाली रचना । खूबसूरत शब्द-रेखाओं ने निर्जीव चीज़ों में भी जान डाल दी। यह तो एक कमरे और उसे इस्तेमाल करने वाले एक आलसी व्यक्ति पर लिखा लघु उपन्यास लगता है । जैसे हाइकु गागर में सागर का काम करता है उसी तरह इस हाइबन के कथ्य ने भी गागर में सागर का काम किया है कुदरत के साथ तुलनात्मक वर्णन। कमरे की अस्त व्यस्तता की मुँह बोलती तस्वीर हमारे सामने रख दी है। फिर हमें बड़ी शालीनता से प्राकृतिक सुंदरता के दर्शन भी करा दिए। वाह!बहुत खूबसूरत हरदीप जी आप की लेखनी यूँ ही चलती रहे। शुभ कामनाएं और बधाई।
अद्भुत लेखनी आपकी। नमन। सचित्र दृश्य उपस्थित हो गया। बधाई।
hardeep ji aapne bade hi adbhud dhang se aalsee vyakti evam kudrat ki prakrati ka tulnatmak varnan kiya hai ....maanon hum apnee in aankhon se saara drishy dekh rahe ho.... bahut sundar!..sadar naman hai aapki lekhnee ko !
सबसे पहले हाइबन पढ़ने तथा पसंद करने वाले सभी दोस्तों का मैं तहे दिल से शुक्रिया करती हूँ। जब मैं ये हाइबन लिख रही थी तो मैं एक ओर उस व्यक्ति की मेज़ को तथा दूसरी ओर प्रकृति को देख रही थी। शब्दों का चुनाव खुद -ब -खुद होता चला गया।परन्तु मैंने अपने बारे में नहीं सोचा था कि मुझे क्या अच्छा लगता है। मगर पाठकों खासकर पुष्पा मेहरा जी की दृष्टि से मैंने खुद को देखा। जब लिख रही थी तो मुझे ये याद ही नहीं था कि प्रकृति के अंग की सुंदरता, शांति तथा नम्रता की गरिमा संभाले मन को ही पेड़ -पौधे तथा प्रकृति मोहती है। प्रकृति की सुंदरता देखने के लिए योग्य दृष्टि तथा समय दोनों की आवश्यकता है। जो प्रकृति से बातें करना सीख गया वह अपने व्यस्त रूटीन में से इसे देखने के लिए समय ज़रूर निकाल लेगा, ऐसा मेरा मानना है। आपके सहयोग और स्नेह के लिए एक बार फिर से धन्यवाद !
हरदीप कौर सन्धु
bahan shabd kahan se nikale hain chun chun kar bahut hi uttan lekhan hai pathak aapke likhe ke sath bah jata hai bahan aapke likhe pr jitna kahun kam hai
kamal kamal
badhai
Rachana
अति सुन्दर हाइबन हरदीप जी। हार्दिक बधाई
अदभुत
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...भाव और भाषा का अनुपम सौन्दर्य मन मोहक है !
हार्दिक बधाई आपको !!
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