शशि पाधा
1
भरमाए रहते हो
बरसो तो जानें
बस छाए रहते हो ।
2
कुछ पल को तड़पोगी
गर हम बरस गए
चुनरी में भर लोगी ।
3
कुछ समझ नहीं आता
सच-सच बतलाना -
बिजुरी से क्या नाता ?
4
मुझको बिजुरी भाती
नभ की गलियों में
हम बचपन के साथी ।
5
थोड़े से काले हो
धूप बताती है
कुछ भोले- भाले हो ।
6
हम तो बंजारे हैं
इत-उत फिरते हैं
औरों से न्यारे हैं ।
7
क्यों रोज़ सताते हो
इक पल दिख जाते
दूजे छिप जाते हो ।
8
यह खेल पुराना है
आँख मिचौनी को
सबने पहचाना है ।
9
यह बात तभी जानूँ
मन के आँचल में
छिप पाओ तो मानूँ ।
10
इस पल को तरस गए
आँखें मींचो तो
लो हम तो बरस गए ।
11
आँखों में भर लेंगे
तुझको मोती- सा
पलकों पे धर लेंगे ।
12
बूँदें जो झरती हैं
आँखों की झीलें
आँखों की झीलें
हमसे ही भरती हैं ।
13
सावन को जाने दो
तुम तो रुक जाना
त्योहार मनाने दो ।
14
लो कैसे जाएँगे
डोरी प्रीत- भरी
हम तोड़ न पाएँगे।
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