डॉ सरस्वती माथुर
1
अँगुली
थामे
पथरीली
राहों पे
चलना
सीखा
कैसे
चुकाऊँ मोल
स्नेह
पथ अनमोल ।
2
घर-
दीवारें
जोड़ी
मन तारों से
विश्वास
-भरा
आकाश
बना पिता
जमीं
पे किया खड़ा ।
3
मन
-संस्कृति
सभ्यता
की नींव भी
लोक
भी पिता
जीवन
-द्वार पर
खड़े
- मसीहा जैसे ।
4
तुम्हारी
गोदी
मेरा
घर -आँगन
तुम्हारा
मन
मंदिर
का दर्शन
शत
शत नमन ।
5
पिता
- चरण
बेटे
-बेटी के लिए
ऐसी
चौखट
जहाँ
दिया जलाएँ
तो
मन हो रोशन I
6
मन
-आँगन
अँधेरा
हटाकर
रोशनी
भर
जलता
दिया पिता
मसीहा
सा लगता ।
-0-
1 टिप्पणी:
sundar bhaav puurn prastuti ! saadr naman !!
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