गुरुवार, 30 मई 2013

जेठ की धूप

-भावना कुँअर

जेठ की धूप
बनकर दुश्मन
जलाती तन
बिगाड़े सब रिश्ते।
बाज़ न आती
आग तक लगाती
न घबराती
हैं सब ही पिसते।
पूरे जंगल
धू-धू कर जलते
मूक रहते
हर दर्द सहते।
नन्हें -से पौधे
माँगते जब पानी
बनाकर वो
भाप जैसे उड़ाती।
गर्व करती
खूब ही अकड़ती
न ही थकती
पल भर में फिर
गर्म साँसें भरती।
-0-

मंगलवार, 28 मई 2013

भाव-सखा

 शशि पुरवार
1
पीर मन की
तपता रेगिस्तान
बिखरे ख्वाब
पतझड़ समान
बसंत भी रुलाए ।
2
तुम हो मेरे
भाव-सखा सजन
तुम्हारे बिन
व्यथित मेरा मन
बतलाऊँ मैं कैसे ? .
3
चंचल हवा
मदमाती -सी फिरे
सुन री सखी  !
महका है बसंत
पिय का आगमन !
4
शीतल हवा
 ये अलकों से खेले
मनवा डोले
बजने लगे चंग
सृजित हुए छंद ।
-0-

शनिवार, 25 मई 2013

ताँका

1-रेखा रोहतगी
1
पलाश खड़े
लाल छाता लगाए
गर्मी में जब
जलते सूरज ने
अँगारे बरसाए ।
-0-
2-डॉ सरस्वती माथुर
1   
मुँडेर पर
शिशिर भोर जागी
मयूरी धूप
दिन भर भागती
सागर में जा लेटी ।
2
सुर्ख भोर थी
नभ झूलना झूले
झिलमिलाती
धरा के आँगन पे
मोती बिखेरती  ।
3
उनींदी रात
चाँदनी नभ पर
निर्झर बहे
तारों के संग संग
मनवा संग दहे l
4
हवा के संग
चाँदनी का आँचल
धरा पे फैला
रात कपाट खोल
भोर सीटी बजाए l
5
मन को छुए
चिड़िया की चहक
जाने क्या कहे
शहर की भीड़ में
छज्जे ढूँढ़ती डोले l
-0-


बुधवार, 22 मई 2013

परबत की पीर बहे ।


डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 
1
सोने -सी निखर गई 
नाम लिया तेरा 
सिमटी ,फिर बिखर गई
2
है दिल की लाचारी 
मत खोलो साथी 
यादों की अलमारी
3
वो लाख दुहाई दें 
बस में ना उनको 
अब याद रिहाई दें
4
अँखियाँ कितनीं तरसीं 
यादों की बदली 
फिर उमड़ -उमड़ बरसी
5
बादल तो काले थे 
यादों के तेरी 
बस साथ उजाले थे
6
हौले से हाय छुआ 
तेरी याद किरण 
मन मेरा कमल हुआ
7
जग दरिया लाख कहे 
जान गई मैं तो 
परबत की पीर बहे
8
पीले -से पात झरे 
अनचाहे ,दिल के 
होते हैं जख्म हरे
-0-

शनिवार, 18 मई 2013

भोर चिरैया


डॉ सुधा गुप्ता
1
भोर चिरैया  चहकी
अति शुभ वेला में
थी खुशबू बन महकी।
2
आँगन ने परचाया
दाना -दुनका था
घर की भी थी माया ।
3
वो मीठा गाती थी
चहक-चहक करके
घर-भर बहलाती थी ।
4
दिन यूँ ही कुछ बीते
सपने अँखुआए
लगते थे मनचीते ।
5
इक दिन उसने पाया
आँगन तंग हुआ
आकाश-कुसुम भाया।
6
था चाहों का साया
प्राण-पपीहा भी
उड़ने को ललचाया।
7
वो आँगन छोड़ गई
भूली तेरा दाना
मुख तुझसे मोड़ गई ।
8
ये आँगन सूना है
भोर रुलाती है
दु:ख तेरा दूना है।
9
यादों में मत खोना
बिसरा बीती को
धर धीरज , मत रोना ।
10
जो पंछी उड़ जाते
बँध नव बन्धन में
फिर लौट नहीं पाते ।
11
वह नीड़ बसाएगी
लाके दो तिनके
घर -द्वार सजाएगी ।
12
जग का यह कहना है-
कुछ दिन का नाता
फिर बिछुरन सहना है ।
-0-

गुरुवार, 16 मई 2013

खिले हँसी के रंग


- कृष्णा वर्मा 

संघटित-सा
पर्वत शिखर पे
धवल हिम
सूर्य के संस्पर्श से
पिघल उठा
जल धार बन के
उतर आया
अचल के पैरों में
छुई-मुई-सा
चट्टानों से लिपटा
सोई घाटियाँ
निखरने लगी यूँ
स्पर्श पाते ही
खिल उठे उसकी
छाती पे फूल
ठुमकने से लगे
शाख़ों पे पत्ते
नि:सर्ग के रँगों में
बही चेतना
धरती के होंठों पे
खिले हँसी के रंग।
-0-

मंगलवार, 14 मई 2013

अपरिचित मन



तुहिना रंजन

अनमना -सा  
अपरिचित मन  
ढूँढने चला  
एक डोर का छोर 
गुत्थियाँ  मिलीं  
उलझे ताने- बाने  
स्वयं मैं प्रश्न  
उत्तर जाने कौन?
मैं ही मकड़ी  
बुनती मायाजाल  
कैसे जकड़ी
विस्मित -सा सवाल !! 
छिन्न करता  
रस्साकशी का खेल  
बिखरी खड़ी  
विभाजित होती मैं  
एक तिनका  
बहकर जो आया  
मिला संबल  
जीवनदान पाया  
छूटा जो सिरा  
अब पकड़ आया  
लौटी मुस्कान  
टूटेगा अंतर्जाल  
होगा स्वपरिचय 

रविवार, 12 मई 2013

विश्व- गरिमा


1-मंजु गुप्ता
1-ईश का रूप माँ
जग में माँ है 
सत्यम् - शिवम् - सुंदरम् 
हैं विश्व शक्ति 
ईश्वरीय रूप वे 
उसके आगे 
फीके हैं सारे रिश्ते 
 तौले माँ के 
उन सारे  गुणों को 
है झुक जाता 
तराजू का पलड़ा ,
धैर्य - त्याग की 
प्रतिमूर्तियाँ हैं वे 
रहें अटल 
कर्तव्य पालन में,
हर माँ होती 
अपनी संतान की 
प्रथम  स्कूल 
जीवन निर्माण को 
गढ़ती वह 
वर्तमान - भविष्य 
को सँवारती 
भुवन भी उनका 
करे गुणगान 
बाधा - उलझनों को 
सुलझा देती 
माँ से बड़ी जग में 
नहीं कोई दौलत ।
-0-
2-हर धड़कन में  माँ  

 माँएँ हैं  दुर्गा 
अनंत की महिमा 
विश्व-  गरिमा 
सृष्टि की निपुणता 
प्रेम की गंगा 
विवेक में द्रौपदी 
पतिव्रता में 
सीता-अनसूया-सी 
सावित्री बन 
यम शास्त्रार्थ कर 
वापिस लाई 
पति सत्यवान को 
हैं प्रमाण ये 
कर्तव्यपालन के 
स्नेह - ममता 
देती जीवनभर 
सेवा - सुश्रूषा
 करके  तृप्त होता 
जगजीवन 
हर धड़कन में 
बसी रहती है माँ ।
-0-
2-डॉ सरस्वती माथुर
1
प्रेम अगाध
संतानों के साथ है
माँ की दुआएँ
है अनूठी ये बात
रहें दुःख में साथ l
3
कठिन पथ
थाम जीवन -रथ
पार कराए
प्रगति- पथ पर
माँ ही लक्ष्य दिखाए

मीठी -सी याद


 सुदर्शन रत्नाकर

 मीठी -सी याद
अब भी भीतर है
कचोटती है,
ठंडे हाथों का स्पर्श
होता है मुझे
हवा जब छूती है
मेरे माथे को
दूर होकर भी माँ
बसी हो कहीं
मन की सतह में,
आँचल तेरा
ममता की छाँव का
नहीं भूलता,
बड़ी याद आती है
जब बिटिया
मुझे माँ बुलाती है
जैसे बुलाती थी मैं
-0-