शशि पुरवार
1
पीर मन की
तपता रेगिस्तान
बिखरे ख्वाब
पतझड़ समान
बसंत भी रुलाए ।
2
तुम हो मेरे
भाव-सखा सजन
तुम्हारे बिन
व्यथित मेरा मन
बतलाऊँ मैं कैसे ? .
3
चंचल हवा
मदमाती -सी फिरे
सुन री सखी !
महका है बसंत
पिय का आगमन !
4
शीतल हवा
ये अलकों से खेले
मनवा डोले
बजने लगे चंग
सृजित हुए छंद ।
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पीर मन की
तपता रेगिस्तान
बिखरे ख्वाब
पतझड़ समान
बसंत भी रुलाए ।
2
तुम हो मेरे
भाव-सखा सजन
तुम्हारे बिन
व्यथित मेरा मन
बतलाऊँ मैं कैसे ? .
3
चंचल हवा
मदमाती -सी फिरे
सुन री सखी !
महका है बसंत
पिय का आगमन !
4
शीतल हवा
ये अलकों से खेले
मनवा डोले
बजने लगे चंग
सृजित हुए छंद ।
11 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर सृजन शशि जी ...बहुत बधाई !
शुभ कामनाओं के साथ
ज्योत्स्ना शर्मा
बहुत खूब लिखा है बधाई .
bahut sundar tanka hain Shashi ji ...
bahut sundar tanka hain Shashi ji ...
www.manukavya.wordpress.com
shashi ji pratyek tanka sundar :) badhaayi :)
shukriya himanshu ji , sandhu ji hamen shamil karne ke liye
shukriya mitro utsaahvardhan hetu
शशि जी सभी ताँका बहुत सुन्दर...बधाई।
चंचलता और श्रंगार का भाव लिए सुंदर ताँका। बधाई शशि जी !
चंचल, श्रंगार का सौन्दर्य लिए सुंदर ताँका। बधाई शशि जी !
सभी तांका बहुत सुन्दर...पर ये वाला खास तौर से मन को छू गया...|
बधाई...|
प्रियंका
पीर मन की
तपता रेगिस्तान
बिखरे ख्वाब
पतझड़ समान
बसंत भी रुलाए ।
ये तांका बहुत भाया...|
बधाई...|
प्रियंका
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