तुहिना रंजन
अनमना -सा
अपरिचित मन
ढूँढने चला
एक डोर का छोर
गुत्थियाँ मिलीं
उलझे ताने- बाने
स्वयं मैं प्रश्न
उत्तर जाने कौन?
मैं ही मकड़ी
बुनती मायाजाल
कैसे जकड़ी ?
विस्मित -सा सवाल !!
छिन्न करता
रस्साकशी का खेल
बिखरी खड़ी
विभाजित होती मैं
एक तिनका
बहकर जो आया
मिला संबल
जीवनदान पाया
छूटा जो सिरा
अब पकड़ आया
लौटी मुस्कान
टूटेगा अंतर्जाल
होगा स्वपरिचय
5 टिप्पणियां:
एक तिनका
बहकर जो आया
मिला संबल
जीवनदान पाया
छूटा जो सिरा
अब पकड़ आया
लौटी मुस्कान
टूटेगा अंतर्जाल
होगा स्वपरिचय
बहुत बढ़िया पंक्तियाँ
बधाई .
waah gajab .. uttam choka @tuhina ji ..
मैं ही मकड़ी
बुनती मायाजाल
कैसे जकड़ी ?
विस्मित -सा सवाल !!
छूटा जो सिरा
अब पकड़ आया
लौटी मुस्कान
टूटेगा अंतर्जाल
होगा स्वपरिचय
आत्म मंथन प्रस्तुत करता बहुत प्रभावी चोका ...बधाई तुहिना जी
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
Bahut bhavuk...
छूटा जो सिरा
अब पकड़ आया
लौटी मुस्कान
टूटेगा अंतर्जाल
होगा स्वपरिचय
स्वपरिचय बहुत ज़रूरी है जीवन के लिए...| सुन्दर, भावप्रवण रचना के लिए बधाई...|
प्रियंका
एक टिप्पणी भेजें