डॉ सुधा गुप्ता
1
अति
शुभ वेला में
थी
खुशबू बन महकी।
2
आँगन
ने परचाया
दाना
-दुनका था
घर
की भी थी माया ।
3
वो
मीठा गाती थी
चहक-चहक
करके
घर-भर
बहलाती थी ।
4
दिन
यूँ ही कुछ बीते
सपने
अँखुआए
लगते
थे मनचीते ।
5
इक
दिन उसने पाया
आँगन
तंग हुआ
आकाश-कुसुम
भाया।
6
था
चाहों का साया
प्राण-पपीहा
भी
उड़ने
को ललचाया।
7
वो
आँगन छोड़ गई
भूली
तेरा दाना
मुख
तुझसे मोड़ गई ।
8
ये
आँगन सूना है
भोर
रुलाती है
दु:ख
तेरा दूना है।
9
यादों
में मत खोना
बिसरा
बीती को
धर
धीरज , मत रोना ।
10
जो
पंछी उड़ जाते
बँध
नव बन्धन में
फिर
लौट नहीं पाते ।
11
वह
नीड़ बसाएगी
लाके
दो तिनके
घर
-द्वार सजाएगी ।
12
जग
का यह कहना है-
कुछ
दिन का नाता
फिर
बिछुरन सहना है ।
-0-
6 टिप्पणियां:
डाली है फूलों की
चाह सदा मन में
ममतामय झूलों की ...सब प्रकार से स्वस्थ, प्रसन्न मन आप इस परिवार पर सदा सदा स्नेह आशिष बरसायें ...आपका मार्गदर्शन हमें मिलता रहे ..जन्म दिवस पर ऎसी स्वार्थ भरी ..:)....शुभ कामनाओं के साथ ...:)
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
...एक एक माहिया अनमोल है ...लेकिन ...यह तो बीज मन्त्र है जीवन का ....
यादों में मत खोना
बिसरा बीती को
धर धीरज , मत रोना ।...सुख का सार !!
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
बहुत-बहुत सुंदर भाव लिए हुए माहिया..!
हार्दिक बधाई सुधा दीदी !
~सादर!!!
बहुत सुन्दर...बधाई...|
यादों में मत खोना
बिसरा बीती को
धर धीरज , मत रोना ।
बहुत सुन्दर...बधाई
Eak 2 shabd dil men utar gaya hai...hardik shubkamnaye...
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