गुरुवार, 18 जनवरी 2024

1157

 

भीकम सिंह

1

 

नि: शब्द हुआ

दिल का अनुराग

याद मुझे था

जब फैली मुस्कान

भीतर में दु:ख था ।

2

प्रेम निशानी

छिप - छिप पहनें

ठुड्डी को छूले

धूल भरे पैरों से

गॅंवई -सी मोह - ले 

 

 

3

बाट जोहती

खेत की मेड़ पर

प्यार में खड़ी

पूस की पूर्णिमा में

काटे,अमा की घड़ी ।

4

प्रेयस तक

हुंची नहीं बात

एक मन था

डूबता - उतरता

प्यार में उस रात ।

5

प्रेम में पड़ी

कितना कह गई

एक झलक

करवटें फेरे, ज्यों

सवेरे - सी पुलक ।

सोमवार, 1 जनवरी 2024

1155

 

भीकम सिंह

1

लो, विदा हुई

एक और साल की

सोचें -विचारें

कैलेण्डर वॉल की

कुछ नये ढाल की ।

2

अस्त हुआ है

एक वर्ष का सूर्य

दु:ख सहते

नई तारीखें लेके

आओ, फिर बहते ।

3

पुराना वर्ष

प्रश्नों को छोड़ गया

कल के लिए

उदय हुआ नया

ज्यों बदल के लिए ।

4

ठेल -ठालके

जैसे तैसे बीता है

पुराना वर्ष

आओ नये के देखें

विषाद और हर्ष ।