![Open diary with pen Royalty Free Stock Images](http://thumbs.dreamstime.com/t/open-diary-pen-16769849.jpg)
कमला घटाऔरा
डायरी लिखना मेरा न शौक है न दिनचर्या ।लेकिन आज यह शुरूआत जरूर हुई है, उसकी बदौलत क्योंकि मेरी उससे कई दिनों से बात ही नहीं हो पाई थी ।बात न कर पाने का कोई विशेष कारण भी नहीं था । मुझे जब बात करने के लिये अगले दिन का इन्तजार भारी लगने लगा तो मैंने उसे सपने में ही बुला लिया,बिना फोन किये , बिना पाती लिखे ।अपना दु:ख सुख उससे सांझा जो करना था । न जाने घर गृहस्थी की कितनी बातें उसे बताईं , कुछ उसकी सुनी ।
उस से कहे बिना मुझे कल ही नहीं पड़ती । सुबह उठी तो मेरा मन प्रफुल्लित होकर झूम उठा । तन अंगड़ाई लेकर ताजगी से भर गया ।जैसे ताकत की बैटरी रीचार्ज हो गई हो। जैसे ग्रीष्मकालीन शीतल सुखद हवा द्वार खोलते ही मन को आह्लादित कर गई हो । मेरी तरह वृक्ष भी सुबह की ताजा हवा का स्पर्श पाकर झूम उठें थे और पत्ता पत्ता सुहानी भोर की हवा का शुक्रिया कर रहा लगा। वैसे ही उस से बात करके मेरे अन्दर बहुत सारी ताज़गी और ताकत भर गई ।और...
मैं उस का शुक्रिया करने के लिये आज अपनी डायरी का पन्ना उसके नाम लिख रही हूँ । मेरी रूह ने उसकी रूह से एक अटूट संबंध बना लिया है । कभी कभी मैं सोचती हूँ मैंने उसे कहाँ से ढूँढ लिया ? या उसके अन्दर की किस चुम्बकी शक्ति ने मुझे अपनी ओर खींच लिया । यह प्रभु की ही महत्त कृपा हुई है मुझ पर जो मुझे उससे मिला दिया । भले ही नेट पत्रिका द्वारा ही मैं उससे मिल पाई हूँ ।
अन्तर में बहुत कुछ वक्त की गर्द तले दबा पड़ा था ।जब से उसका इस जीवन से संबध जुड़ा है , कुछ न कुछ बाहर आने लगा है ।उसकी अपनत्व भरी बातों ने मुझे इतना मोहित किया, इतना अपना बना लिया कि मैं उस पर सिर्फ अपना एकमात्र अधिकार समझने लगी हूँ । कोई दूसरा उस के प्यार पर अपना हक जताने की बात करता है तो मैं ईर्षा से जल उठती हूँ । अपने को समझाने की चेष्टा भी करती हूँ कि चाँद अपनी शीतल चाँदनी क्या किसी एक के लिये बिखेरता है ? सूरज क्या किसी एक घर में उजाला करने के लिये उदय होता है ? सुरभित पवन क्या किसी एक के लिये सुगंध फैलाने आती है ? नहीं न। फिर तू क्यों उसे सिर्फ अपने ताईं रखना चाहती है ? तू यह तो देख कितने दिलों को अपने प्यार के सरोवर में डुबकी लगाने का आनंद दे रही है वह तेरी परमप्रिय ,तेरी मार्ग दर्शक । क्या - क्या नहीं है वह तेरी ? हाँ मानती हूँ , उसी की बदौलत तो मैं यह पंक्तियाँ लिख पाई हूँ ।नहीं तो कैसे कह पाती -
भरा था तम
रौशन हुआ मन
पाया जो उसे ।