सूरज नासपिटा
डॉ जेन्नी शबनम
सूरज पीला
पूरब से निकला
पूरे रौब से
गगन पे जा बैठा,
गोल घूमता
सूरज नासपिटा
आग बबूला
क्रोधित हो घूरता,
लावा उगला
पेड़-पौधे जलाए
पशु -इंसान
सब छटपटाए
हवा दहकी
धरती भी सुलगी
नदी बहकी
कारे बदरा ने
ज्यों
ली अँगड़ाई
सावन घटा छाई
सूरज चौंका
''मुझसे बड़ा कौन?
मुझे जो ढका'',
फिर बदरा हँसा
हँस के बोला -
''सुनो, सावन आया
मैं नहीं बड़ा
प्रकृति का नियम
तुम जलोगे
जो आग उगलोगे
तुम्हें बुझाने
मुझे आना
ही होगा'',
सूरज शांत
मेघ से हुआ गीला
लाल सूरज
धीमे-धीमे सरका
पश्चिम चला
धरती में समाया
गहरी नींद सोया !
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10 टिप्पणियां:
वाह डॉ जेन्नी जी बहुत सुन्दर चौका लिखा है । सच ही है गर्मी में जब सूरज आग उगलता है तो नासपीटा ही लगता है ।हार्दिक बधाई आपको ।
जेन्नी जी आग बबूले सूरज को प्यार भरे क्रोध से जो गाली दी सही जगह पर आने से सज गई ।आखिर ग्रीष्म का सूरज है ही इस लायक ।
उसे उसकी औकात दिखाने सावन को आना ही पड़ता है ।कोई किसी से बड़ा नही सब अपनी जगह बड़े हैं ।सुन्दर चौका ।बधाई स्वीकारे बड़े दिनों बाद आये ।
suraj par aapko krodh achha laga meri badhai...
सामयिक भीषण वैशाख की गर्मी को दर्शाता सुंदर मनभावन चौका .
बधाई
वाह! जेन्नी जी बहुत खूब सूरज भले तपाने से बाज ना आए लेकिन मीठी सी झिड़की और गाली दे कर मन को ठंडक तो मिल ही जाती है। बहुत बढ़िया चोका.... हार्दिक बधाई।
जेन्नी जी तपते सूर्य का बहुत सुंदर वर्णन। अच्छा चोका।
bahut achchha lagaa.
वाह! जेन्नी जी वैशाख की गर्मी को दर्शाता सुंदर चौका .लिखा है आपनें... हार्दिक बधाई आपको ।
बहुत खूब जेन्नी जी ! चलचित्र चला दिया आपने तो ...प्रचंड गर्मी और वर्षा का आगमन ...बहुत सुंदर !
हार्दिक बधाई !!
वाह जेन्नी जी...बहुत अनोखा और खूबसूरत चोका है...|
हार्दिक बधाई...|
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