सोमवार, 22 फ़रवरी 2021
मंगलवार, 16 फ़रवरी 2021
955
1-सुदर्शन रत्नाकर
1
धानी चूनर
ओढ़ के वसुंधरा
खुशी से इठलाई
ले अँगडाई
मौसम है बदला
ऋतु वसंत आई।
2
श्वेत गजरे
काले कुंतल सजे
सतरंगी फूलों की
कंठ में माला
पहन पीली साड़ी
धरा हरियाई है।
3
मिठास भरा
हुआ वातावरण
आया है मधुमास
चाँदनी रात
मधु है बरसाती
स्वच्छ होती प्रकृति ।
4
खिले हैं फूल
तितलियों का मेला
भँवरों की गुँजार
मधुमक्खियाँ
चूसें मिल पराग
आया है मधुमास।
5
अमराई में
कूक उठी कोयल
बजी ज्यों शहनाई
लेके बारात
लो आ गया वसंत
बाँधी है पाग पीली।
6
ऋतु वसंत
खिले दिग-दिगन्त
बावरी हुई हवा
कर शृंगार
धरा बनी दुल्हन
दूल्हा बना गगन।
7
महक उठी
मंजरी पेड़ पर
बहने लगी बयार
खिलने लगीं
चंपा और चमेली
गूँजी कोकिल तान।
-0-
सोमवार, 1 फ़रवरी 2021
954
रिश्ते
सविता अग्रवाल 'सवि' (कैनेडा)
1
मैले थे रिश्ते
धो-धोकर निखारे
प्रेम -साबुन संग
आया निखार
सुगंध मन रची
बगिया फिर सजी।
2
बिखरे रिश्ते
दामन में समेटे
गठरी-गाँठ बाँधी
खुले ना कभी
इत्र छिड़ककर
प्रेम -कोठरी धरी।
3
चंचल रिश्ते
सागर लहरों -से
अठखेलियाँ करें
तट पर आते
मिलन-आस लिये,
पर बिखर जाते।
4
गीले थे रिश्ते
स्नेह -धूप लगाई
परतें खोलीं जब
गर्माई आई
प्रेम-चादर बिछी
सुन्दर छटा पाई।
5
स्नेह- लिपटे
गुड़ चिक्की- से रिश्ते
देखूँ मैं ललचाऊँ
थाली में भर
मिठास से उनकी
सुख-आनंद पाऊँ।
6
शूल जो चुभे
कटे घावों पर मैं
मरहम लगाऊँ
रिश्तों की गर्मी
देकर सहलाऊँ
अनुभूतियाँ पाऊँ।
7
बाँधे न बँधें
सिंधु- लहरों जैसे
उठते- मचलते
डोलते रिश्ते
तट से कैसा नाता?
छूकर चले जाते।
8
वक़्त ले उड़ा
संग रिश्तों की डोर
दूर पर्वतों पर
चढ़ूँ तो कैसे
थक गए क़दम
पकड़ नहीं पाऊँ।
9
बेनाम रिश्ते
अहसासों में पलें
दिलों की धड़कन
नयन बसे
गुमनामी की उम्र
स्मृतियों में ही जिए।
10
मीलों चलते
हाथ पकड़कर
दूरी तय करते
बँधे से रिश्ते
ठोकर लगते ही
गहरी चोट खाते।
11
रिश्तों की गंध
बगिया उपवन
घर-
द्वार -आँगन
उजास भरे
उजाले-सी उजली
चिर दीपक जले।