सोमवार, 19 फ़रवरी 2024

1159-माहिया

 

 रश्मि विभा त्रिपाठी
1


कोई तारा टूटे
माँगी एक दुआ
ये साथ नहीं छूटे।
2
जख्मों को सिलता है
तुम- सा साथी तो
किस्मत से मिलता है।
3
जब तू मुसकाता है
खुशबू का दरिया
बहता ही जाता है।
4
जिस पल तुम पास रहे
जीने का मुझको
उस पल हसास रहे।
5
माना बरसों बीते
तुमसे बिछुड़े पर
तुम मुझमें ही जीते।
6
तुमसे अपना नाता
कितने जनमों का
मन समझ नहीं पाता।
7
तुमको ऐसे पाया
तन के संग- संग ज्यों
रहती उसकी छाया।
8
हर रोज उजाले हैं
ख्वाब तुम्हारे ही
आँखों में पाले हैं।
9
खिड़की ये यादों की
जब भी खुलती है
ज्यों रातें भादों की।
10
देते हो रोज दुआ
हर इक मंजर में
मुझको महसूस हुआ।
11
तुमने अपनाया है
एक नया जीवन
मैंने तो पाया है।
12
सोना, चाँदी, हीरा
कुछ भी ना चाहूँ
तुम मोहन, मैं मीरा।

13

जब- जब भी मैं आऊँ
तो इस दुनिया में
हर बार तुम्हें पाऊँ।
14

जाना है तो जाओ
फिर कब आओगे
बस इतना बतलाओ।

-0-

9 टिप्‍पणियां:

भीकम सिंह ने कहा…

बहुत सुंदर माहिया, हार्दिक शुभकामनाऍं रश्मि जी।

बेनामी ने कहा…

सुंदर, मनमोहक माहिया के लिए हार्दिक बधाई रश्मि जी। सुदर्शन रत्नाकर

surbhidagar001@gmail.com ने कहा…

बहुत ही सुन्दर हार्दिक बधाई आपको।
सादर
सुरभि डागर

Rashmi Vibha Tripathi ने कहा…

मेरे माहिया प्रकाशित करने हेतु आदरणीय सम्पादक द्वय का हार्दिक आभार।
आदरणीया रत्नाकर दीदी, आदरणीय भीकम सिंह जी और आदरणीया सुरभि जी का हार्दिक आभार।

सादर

Krishna ने कहा…

बहुत सुंदर माहिया... हार्दिक बधाई रश्मि जी।

dr.surangma yadav ने कहा…

बहुत सुंदर माहिया।हार्दिक बधाई आपको।

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत सुन्दर माहिया, बधाई रश्मि जी.

बेनामी ने कहा…

बधाई

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

बहुत ही सुंदर, भावपूर्ण माहिया!

~सादर
अनिता ललित