शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021

968-आम के पेड़ पर अंगूर

 

अनिता मण्डा

इन दिनों शाम का काफी समय बालकनी में ही गुजरता है।


महामारी के समय घर से बाहर निकलना सही नहीं। बच्चों के लिए भी घर पर रहना ही सुरक्षित है
; इसलिए दिन कमरों में बंद रहकर बिताने के बाद शाम को बाहर की झलक लेने बच्चे और मैं बालकनी पर आधिपत्य जमा लेते हैं। आसमान में कभी-कभी पक्षियों के झुंड उड़ते हुए दिख जाते हैं, कभी इक्के दुक्के अकेले पक्षी उड़ते रहते हैं। कौवे, कबूतर, तोते, चिड़िया, चील इधर-उधर उड़ते दिख जाते हैं।

   घर के एकदम साथ में एक पुराना आम का पेड़ है। उसकी शाखाएँ कई बार आँधियों में टूट चुकी हैं, जिससे वह थोड़ा खंडित- सा लगता है। बहुत सारे पक्षियों का इस पर बसेरा है। इस बरस  इस पर बहुत कम बौर आया है। अप्रैल की शुरुआत से इसमें छोटे-छोटे फल नज़र आने लगे हैं। कई बार कोयल भी आती है। बाक़ी समय गिलहरियाँ धमा-चौकड़ी मचा रखती हैं। इस पेड़ के दोस्त पंछी, गिलहरियाँ आदि बच्चों को बहुत प्यारे हैं। उनके लिए यह नया संसार है जो कि मोबाइल और यू ट्यूब से अलग वास्तविक है। 

  नीर-निक अभी वय में सवा दो साल के हुए हैं। मुझे बड़ी मम्मा कहते हैं। कल मैंने आम के छोटे-छोटे फल दिखाकर नीर को बताया कि देखो पेड़ पर आम लग गए हैं। उसने ध्यान से निरीक्षण- परीक्षण, अवलोकन किया और निष्कर्ष निकाला - "नहीं बड़ी मम्मा, आम नहीं अंगूर हैं।" 

"नीर को अंगूर खाने हैं।"

दरअसल अभी अम्बियों का आकार बड़े आकार के अंगूर जितना ही है। मैंने उसे दुबारा बताया "अंगूर नहीं अम्बियाँ हैं।" 

उसने मुझे फिर सही करवाया "अम्बियाँ नहीं, बड़ी मम्मा अंगूर ही हैं।

उसका सही करवाना मुझे इतना अच्छा लग रहा था कि मैं बार-बार बता रही थी- "अम्बियाँ हैं, आम के पेड़ पर अंगूर कैसे होंगे"

वह हर बार दुगुने जोश से सही करवाए "अंगूर ही होंगे

 यह हमारे लिए अच्छा खेल बन गया। "आम के पेड़ पर अंगूर कैसे होंगे? आम ही हैं।

उस पर भला तर्क का क्या असर होता? वो तो मेरे बोलने का भी अवलोकन कर रहा था।

"अंगूर ही होंगे, आम कैसे होंगे।

इस सुंदर वार्तालाप में मुझे हार कबूल करनी पड़ी।

 

हार का सुख

जीत से भी अनोखा

गूँगे का गुड़।

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सोमवार, 12 अप्रैल 2021

967- मेरी आराध्या

रश्मि विभा त्रिपाठी 

 फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि फुलौरा दूज का दिन। माँ रोज की दिनचर्या की तरह ही पूजा घर में अपने आराध्य की सेवा में लीन।

"पुष्पं समर्पयामि!


आज के दिन का खास महत्त्व है बेटी! ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण इस अवसर पर फूलों की होली खेलते हैं और रंगोत्सव का शुभारम्भ करते हैं। इस दिन से सब पर फागुनी रंग चढ़ने लगता है”-कहते हुए दीप प्रज्वलित करने लगीं।
"मेरे लिए भी यह दिन विशेष महत्त्वपूर्ण है; क्योंकि इसी शुभ दिन पर ईश्वर ने तुम्हें इस धरती पर भेजा था। मेरी प्यारी माँ जन्म दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ"
"अरे तुझे याद है?"
"भला मैं कैसे भूल सकती हूँ माँ? बताओ क्या दूँ तुम्हें?"
हँसकर मेरे सर पर स्नेह से हाथ धर कह उठी "मेरे ईश ने मुझे सबसे सुंदर उपहार तेरे रूप में दिया है बेटी और मुझे क्या चाहिए?"
"आ बेटी ईश चरणों में वंदन करें"
"माँ मेरी ईश तो तुम ही हो"-
मेरी आराध्या

तूने जीवन दिया

वंदन तुझे।

जीवन के 74 वसंत देख चुकी तुम्हारी आँखों ने मेरे सुखद भविष्य के न जाने कितने स्वप्न देखे हैं,उन स्वप्नों को साकार करने हेतु तुमने कई संघर्ष झेले हैं।
मेरी खुशी के लिये तुम हर मुश्किल से लड़ी होकोई विषम परिस्थिति यदि मेरे समीप आई, तुम सामने चट्टान बनकर खड़ी हो गईं मुश्किलें तुम्हें झुका नहीं सकीं जैसे कि तेज रफ्तार हवाएँ कभी पर्वत को हिला नहीं पाईं।दुखों की आँधी मुझे छू भी नहीं पा।तुम्हारी ओट में मेरी हर साँस सदैव सुरक्षित रही है
मैं कृतज्ञ हूँ माँ
तुम्हारे प्रेम से सुवासित मेरा जीवन...तुम्हारी मातृत्व छाँव में हर घड़ी हँसता मुस्कराता रहा हैतुम हजारों बरस जियो माँ। तुम्हारा साया मेरे सर पर सदा यूँ ही रहे।
मैं बलिहारी
मिली कल्पवृक्ष माँ
शैलकुमारी।