अनिता मण्डा
इन दिनों शाम का काफी समय बालकनी में ही गुजरता है।
महामारी के समय घर से बाहर निकलना सही नहीं। बच्चों के लिए भी घर पर रहना ही सुरक्षित है; इसलिए दिन कमरों में बंद रहकर बिताने के बाद शाम को बाहर की झलक लेने बच्चे और मैं बालकनी पर आधिपत्य जमा लेते हैं। आसमान में कभी-कभी पक्षियों के झुंड उड़ते हुए दिख जाते हैं, कभी इक्के दुक्के अकेले पक्षी उड़ते रहते हैं। कौवे, कबूतर, तोते, चिड़िया, चील इधर-उधर उड़ते दिख जाते हैं।
घर के एकदम साथ में एक पुराना आम का पेड़ है। उसकी शाखाएँ कई बार आँधियों
में टूट चुकी हैं, जिससे वह थोड़ा खंडित- सा लगता है। बहुत सारे पक्षियों का इस पर बसेरा है। इस बरस इस पर बहुत कम बौर आया है। अप्रैल की शुरुआत से
इसमें छोटे-छोटे फल नज़र आने लगे हैं। कई बार कोयल भी आती है। बाक़ी समय गिलहरियाँ
धमा-चौकड़ी मचाए रखती हैं। इस पेड़ के दोस्त पंछी, गिलहरियाँ आदि बच्चों को बहुत प्यारे हैं। उनके
लिए यह नया संसार है जो कि मोबाइल और यू ट्यूब से अलग वास्तविक है।
नीर-निक अभी वय में सवा दो साल के हुए हैं। मुझे बड़ी मम्मा कहते हैं। कल
मैंने आम के छोटे-छोटे फल दिखाकर नीर को बताया कि देखो पेड़ पर आम लग गए हैं। उसने
ध्यान से निरीक्षण- परीक्षण, अवलोकन किया और निष्कर्ष निकाला
- "नहीं बड़ी मम्मा, आम नहीं अंगूर
हैं।"
"नीर
को अंगूर खाने हैं।"
दरअसल अभी अम्बियों
का आकार बड़े आकार के अंगूर जितना ही है। मैंने उसे दुबारा बताया "अंगूर
नहीं अम्बियाँ हैं।"
उसने मुझे फिर सही
करवाया "अम्बियाँ नहीं, बड़ी मम्मा अंगूर ही हैं।"
उसका सही करवाना मुझे
इतना अच्छा लग रहा था कि मैं बार-बार बता रही थी- "अम्बियाँ हैं, आम के पेड़
पर अंगूर कैसे होंगे"
वह हर बार दुगुने जोश
से सही करवाए "अंगूर ही होंगे"
यह
हमारे लिए अच्छा खेल बन गया। "आम के पेड़ पर अंगूर कैसे
होंगे? आम ही हैं।"
उस पर भला तर्क का
क्या असर होता? वो
तो मेरे बोलने का भी अवलोकन कर रहा था।
"अंगूर
ही होंगे, आम कैसे होंगे।"
इस सुंदर वार्तालाप
में मुझे हार कबूल करनी पड़ी।
हार का सुख
जीत से भी अनोखा
गूँगे का गुड़।
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17 टिप्पणियां:
बच्चों से हारने का सुख बहुत प्यारा होता है।भोलापन लिए मनमोहक संवाद। ताज़गी से भरे हाइबन के लिए हार्दिक बधाई।
बेहतरीन हाइबन ,बच्चों के संग ही ये बुरा वक्त कटेगा। यही समय हम सबको बच्चा बनाकर ही मानेगा।
बधाई।
Nice!
मासूमियत भरी .....
सुंदर प्यारी रचना
हार्दिक शुभकामनाएँ अनिता जी
बहुत सुंदर।
बच्चे होते मन के सच्चे
लेकिन वे होते उम्र के कच्चे
उनकी बात मानना ही हितकारी है | बहुत सुंदर -श्याम हिंदी चेतना
बहुत सुन्दर सृजन। हार्दिक बधाई।
बहुत प्यारा अनुभव और अभिव्यक्ति!
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति अनीता जी💐💐👌👌💐💐
सुंदर सकारात्मक प्रतिक्रियाओं के लिए आभारी हूँ।
यह समय हम सबको बच्चा बनाकर ही मानेगा।
बधाई।
बच्चों के साथ रह कर समय तो उड़ान भरता ही है, साथ में ये निर्मलमन हमे संयम, दुनिया देखने के विविध नजरिया और सच्ची खुशी का अहसास भी सीखते हैं।
बेहतरीन हाइबन,बालको के साथ हारने का आनन्द,सचमुच गूंगे के गुड़ की भाँति अनिर्वचनीय होता है।बहुत बहुत बधाई अनीता जी
बहुत सुन्दर हाइबन।
हार्दिक बधाई आदरणीया🌹🌹
बहुत सुन्दर हाइबन...बहुत-बहुत बधाई अनीता जी।
सुखद अनुभव
बच्चों के ऐसी मासूम तकरार बहुत लुभावनी होती है! सुंदर हाइबन अनिता जी! बहुत बधाई आपको!
~सादर
अनिता ललित
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