डॉ भावना कुँअर
1.
घर से चले
सीना तानकर ये
उजले परिधान
शाम ढली तो
घर पर जो लौटे
हैं भूले पहचान।
2.
मेला -सा लगा
पेड़ों की डालों पर
है बेदर्द ये कौन?
आरी चलाए
चरमराया पेड़
हुए पंछी भी मौन।
3.
बीमार पड़ी
आज मुनिया रानी
तैराती
रही
कल,
बना के नाव
पास बहते हुए
बड़े -से
दरिया
में।
4.
उदास गंगा-
हुआ करती थी मैं
पवित्र औ निर्मल,
ये कैसा दौर
आजकल है आया !
कूड़ेदान बनाया।
5.
लुभाता
नहीं
शहरी ये जीवन,
भाता दादा का
गाँव,
अमराई की
मीठी-सौंधी बयार,
बरगद की छाँव।
6.
करते सभा
तितलियाँ औ’
भौंरे
फूलों की बगियों को
कैसे बचाएँ
निर्दय मानव को
कोई रास्ता दिखाएँ।
7.
भूले हैं अब
भौंरे गुनगुनाना
कोयल गीत गाना
फूल मुस्काना
कौन सुने इनका
दर्द भरा फसाना ।
8.
निर्मम पेड़
कराहता ही रहा
रात भर पीड़ा से
शून्य हृदय
काट डाला जिन्होंने
बाजुओं को उसके।
9.
होली के रंग
अंक में भरे हुए
झूमती थी प्रकृति
कालिमा भरी
इस पे पिचकारी
है चला गया कौन।
10.
भाग रहे हैं
इधर से उधर
दहशत-
सी
लिये
पशु औ पक्षी
दाना मिला न पानी
जीना हुआ बेमानी।
-0-
4 टिप्पणियां:
भावना जी बढ़िया भावपूर्ण सेदोका...बहुत-२ बधाई!
‘भावना जी बहुत अच्छा लिखती हैं ...सभी सेदोका बहुत अच्छे हैं’..
होली के रंग
अंक में भरे हुए
झूमती थी प्रकृति
कालिमा भरी
इस पे पिचकारी
है चला गया कौन।
आप बहुत खूब लिखती हैं। आप की लेखनी की तो मैं कयाल हूँ। प्रकृति के साथ तो आप के विशेष संबंध है। हार्दिक बधाई
sabhi sedoka dard ke avaran me lipate hain.
pushpa mehra.
एक टिप्पणी भेजें