सोमवार, 11 अप्रैल 2022

1029- प्रकृति का संदेश

 

 सुदर्शन रत्नाकर

           भोर -बेला में  खुले आसमान के नीचेमंद-मंद बहती बयार  का आनन्द लेती मैं एक छोटे से पार्क में हरी घास पर बैठी हूँ ।ग्रीष्म ऋतु में पार्क के चारों ओर गुलमोहर और अमलतास के पेड़ों के लाल, पीले  झरते हुए फूल, घास के हरे रंग में मिलकर उसकी शोभा बढ़ाते हैं, तो


शरद् ऋतु में हरसिंगार के फूल धरती को समर्पित होते हुए सारे वातावरण को सुगंधित कर देते हैं।पार्क  रंग-बिरंगे फूलों से सुरभित हो रहा है,  जिन पर कहीं तितलियाँ नृत्य कर रही हैं, तो कहीं मधुमक्खियाँ  पराग का रसास्वादन कर रही हैं।छोटे -से बने कृत्रिम तालाब में खिलें सफ़ेद लाल कमल के फूलों  पर भँवरें मँडरा रहे हैं।चारों ओर बिखरी यह प्राकृतिक सुंदरता मन को लुभा रही है। लेकिन एक विचार मन में कौंधने लगता है- मनुष्य ने सारी धरती को सरहदों में बाँट दिया है। कई देश, कई धर्म अलग-अलग रंगों ,अलग-अलग जातियों के लोगअपना अपना अस्तित्व लिये अपनी अपनी पहचान का तमगा छाती पर चिपकाए, सिर उठाए घूम रहे हैं और दूसरी ओर नदियाँ, हवाएँ, फूलों की ख़ुशबूपंख फैलाते पक्षी,भँवरे ,तितलियाँ ,समंदर की लहरें, सूरज की किरणें, चाँद की चाँदनी, सितारों की चमक , वे तो नहीं बँटे। सब जगह एक जैसे, बिना भेदभाव झोली भर-भरकर देते हैं। हवाएँ एक जगह की ख़ुशबू दूसरी जगह फैलाती हैं,  तो पक्षी सीमाओं के बंधन में नहीं बँधते। प्रकृति के इस उत्सव को , इस सारी सुंदरता को आँखों से पीकर आनन्दित होकर मानव प्रकृति के इस संदेश को ग्रहण क्यों नहीं करता! वह स्वार्थ, अलगाव , बिखराव, टूटन, तनाव में क्यों जीता है?

 प्रकृति देती

आँचल भर-भर

मानव स्वार्थी।

16 टिप्‍पणियां:

Anita Manda ने कहा…

वाजिब सवाल उठाता हाइबन। बधाई

Archana rai ने कहा…

बढ़िया हाइबन... इंसान के स्वार्थ का ही दुष्परिणाम है जो धरती को सरहदों में बांट लिया

भीकम सिंह ने कहा…

बेहतरीन हाइबन ,हार्दिक शुभकामनाएँ ।

dr.surangma yadav ने कहा…

विचारणीय प्रश्न उठाता हाइबन।बधाई आदरणीय।

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

सच कहा आदरणीया दीदी जी! मानव स्वार्थी है! प्रकृति तो माँ है! वह अपने बच्चों में नहीं फर्क करती, बच्चे ही उसको बाँट देते हैं! ईश्वर मानव को सद्बुद्धि दे! _/\_

~सादर
अनिता ललित

Sudershan Ratnakar ने कहा…

प्रोत्साहित करती प्रतिक्रियाओं के लिए अनिता मंडा जी, भीकम सिंह जी, सुरंगमा जी, अर्चना जी ,अनिता ललित आप सब का हार्दिक आभार।

शिवजी श्रीवास्तव ने कहा…

प्रकृति के उन्मुक्त वैभव को स्वार्थी मानव ने सीमाओं में विभक्त करने का अपराध किया है।इस भाव को व्यक्त करता सुंदर हाइबन।हार्दिक बधाई।

Sudershan Ratnakar ने कहा…

हार्दिक आभार शिवजी श्रीवास्तव जी।

Krishna ने कहा…

बहुत उम्दा हाइबन...हार्दिक बधाई आदरणीया दी।

नीलाम्बरा.com ने कहा…

बहुत ही सुंदर लिखा आपने, हार्दिक बधाई शुभकामनाएं।

Sudershan Ratnakar ने कहा…

कविता जी , कृष्णा जी हृदय तल से आभार।

Dr. Purva Sharma ने कहा…

सुंदर हाइबन
बधाई आदरणीया

प्रीति अग्रवाल ने कहा…

अति सुंदर हाइबन दीदी ! चारों ओर प्रकृति निःस्वार्थ सौंदर्य बिखेरती है, फिर भी मनुष्य कोई सीख क्यों नहीं लेता?

Sudershan Ratnakar ने कहा…

प्रतिक्रिया से प्रोत्साहित करने के लिए हार्दिक आभार प्रीति जी।

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

बहुत सुन्दर हाइबन, बहुत बधाई

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत सुन्दर और विचारपूर्ण हाइबन। बधाई रत्नाकर जी.