रश्मि विभा
त्रिपाठी
1
जिसको दिल सौंपा था
उसने सीने में
खंजर ही घोंपा था।
2
हर पल ही ख़्याल किया
बनके संग चले
तुम मेरी ढाल पिया।
3
बाहों का हार मुझे
तुम पहनाकरके
दे दो निस्तार मुझे।
4
नयनों में पीर दिखी
आकुल अधर हुए
कैसी तकदीर लिखी।
5
तुमको छूके आई
पुरवाई तेरी
ख़ुशबू लेके आई।
6
जब भी है मुरझाता
तेरी ख़ुशबू से
मन फिर से खिल जाता।
7
बेशक मज़बूर रही
मैं हूँ दूर भले
दिल से ना दूर रही।
8
हर आस अधूरी है
सात समंदर की
तुमसे जो दूरी है।
9
तुम सपनों में मिलते
मन के मरु में प्रिय
पाटल सौ सौ खिलते।
10
बस ये अहसान करो
अपनी पीर सभी
तुम मुझको दान करो।
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