दिनेश चंद्र पाण्डेय
1.
सुंदर दीप
घर-घर में जले
जर्रा-जर्रा रौशन
सब अँधेरे
मिट गए जहाँ से
मेरा मन भी मगन
2.
मेले में जब
आया नजर रूप
किसी मतवाली का
तब जाकर
अमावस हुई पूनो
खिली दीवाली आई
3.
ये सज-धज,
दीवाली की रौशनी
किसकी बदौलत,
लहू-स्वेद से,
सींची नींव जिसने
उसकी बदौलत
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