1-मंजूषा मन
1
ये आँखें भर आईं
तुमने प्यार -भरी
बातें जो दुहराईं।
2
छलकीं आँखें मेरी
तड़पाएँ मन को
प्रियवर यादें तेरी।
3
छाए हैं मेघ घने
स्वप्निल पावस की
आशा का स्रोत बने।
-0-
2-रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'
1
यूँ तुम बिन जीते हैं
ज़हर जुदाई का
हर पल हम पीते हैं।
2
क्यों ये मजबूरी है
अब तो आ जाओ
तड़पाती दूरी है।
3
कब तक ग़म खाएगा
रात ढली दिल की
वो अब ना आएगा।
4
अँधियारा है जीवन
सूरज सम आओ
तुम लेकर रूप- किरन।
5
ये बदरी जो छाई
रिमझिम बनकरके
यादें लेकर आई
6
कुछ घाव निराले हैं
दूर नहीं होते
ये गम के छाले हैं।
7
प्रति पल ही रुदन करे
प्रिय बिन विरहन का
मन कैसे धीर धरे !
8
साँसें ये बिखरी हैं
निस दिन नाम जपे
पीड़ाएँ निखरी हैं ।
-0-
15 टिप्पणियां:
मंजूषा मन एवं रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशु'जी के माहिया प्रीति और विरह के सुंदर भावों की सहज सृष्टि के प्रभावी माहिया हैं।दोनो को बधाई।
मंजूषा जी और रश्मि जी आप दोनो द्वारा माहिया का सुन्दर सृजन है प्रीत और विरह वेदना के अनेक भाव इनमें संहित हैं हार्दिक बधाई |
शृंगार के दोनों रूपों का भावपूर्ण वर्णन करते सुंदर माहिया ।
मंजूषा जी एवं रश्मि जी को हार्दिक शुभकामनाएँ ।
बहुत खूबसूरत।
छोटी मगर गहरी।
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मेरे प्रिय रचनाकार मित्रों का हृदय तल से आभार!
नव सृजन की प्रेरणा सदैव यूँ ही मिलती रहे!
पुन: हार्दिक धन्यवाद!
सादर
बहुत ख़ूबसूरत माहिया! मंजूषा जी, रश्मि विभा जी ...आप दोनों को बहुत बधाई!
~सादर
अनिता ललित
मेरे माहिया प्रकाशित करने के लिए आदरणीय सम्पादक मंडल का हार्दिक आभार
हार्दिक आभार सुशील जी
हार्दिक आभार आपका
हार्दिक आभार सविता जी
बहुत बहुत आभार पूर्वा जी
जी हार्दिक आभार आपका
हार्दिक आभार विभा जी
बहुत बहुत आभार अनिता जी
सुंदर सृजन। मंजूषा जी व रश्मि जी को बधाई।
भावना सक्सैना
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