रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
1
आत्मा में बसे
भ्रम यह तुम्हारा
ध्यान से देखो !
आत्मा हो तुम मेरी
या रीप्रिंट आत्मा का।
2
डूबी थी नौका
भागे कुछ पा मौका
घोर अँधेरा
कोई न रहा साथ
थामा तुमने हाथ।
3
समझें लोग
नफ़रत की भाषा
दो ही पल में
हुआ मोतियाबिंद
प्रेम न दिखे -सूझे।
4
उदास नैन
छप गए मन में
रोज मैं बाँचूँ
सौ -सौ जिनके अर्थ
पढ़ें मन की आँखें।
5
अकेलापन
टीसता पल पल
प्राण विकल
सुनने को तरसें
रोम- रोम कलपें।
6
कुछ तो दे दो
दारुण मृत्यु सही
जीवन भार
अब ढोया न जाए
अब रोया न जाए।
7
किसे दिखाते
निर्मल मन -दर्पण
निपट अंधे
करें रोज़ फैसला
हमको यही गिला।
8
चले जाएँगे
कहीं बहुत दूर
गगन- पार
तब पछताओगे
हमें नहीं पाओगे।
9
कुछ न लिया
हमने दुनिया से
तुमसे मिला
दो घूँट अमृत था
उसी को पी मैं जिया।
10
करते रहो
पूजा ,व्रत,आरती
धुलें न कभी
दाग़ उस खून के
जो अब तक किए।
11
स्वर्ण- पिंजर
कैद प्राणों का पाखी
जाए भी कहाँ
न कोई सगा
सब देते हैं दगा
टूट गया भरोसा।
-0-
9 टिप्पणियां:
आत्मा की आवाज़ , मन की गहराई में बसी व्यथा की सुंदर अभिव्यक्ति। पर इतनी निराशा क्यों ? आशा और भरोसे पर ही तो जीवन टिका है।
ओह.. व्यथित करते तांका
मन उदास हो गया ।
निराशा नहीं , यह जीवन का कटु सत्य है, अकेले मेरा नहीं , बहुत सारे लोगों का जिनको मैं जानता हूँ। काम्बोज
रीप्रिन्ट,मोतियाबिंद जैसे नये प्रतीकों का प्रयोग वाह!भावातिरेक पूर्ण सुन्दर सृजन।
जीवन के सच को उकेरते बहुत भावपूर्ण तांका।
आप सबका बहुत आभारी हूँ!!💐
मन की गहराई से लिखे.... जीवन की पीड़ा को दर्शाते बेहद भावपूर्ण हाइकु !
बहुत गहराई लिए हुए ताँका हैं, बहुत बधाई।
अत्यंत मार्मिक ताँका! मन को भिगो गए सभी। आह कहें या वाह...समझ नहीं आ रहा!
इस सुंदर सृजन हेतु हार्दिक बधाई आ.भैया जी!
~सादर
अनिता ललित
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