शुक्रवार, 11 नवंबर 2022

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धूप की चोटी (चोका)

                   अनिता ललित

 


जी यह चाहे

उचक के पकड़ूँ

धूप की चोटी

और खींच ले आऊँ

अपने पास

नरम गुदगुदी

मन की मौजी  

सूरज की बिटिया –


धूप-चिरैया। 

लुकछिप फिरती

शैतान बड़ी

ये नटखट परी।  

इसे अभी से 

कैसी ठंड है लगी!

अँखियाँ मीचे

ये सुबह-सबेरे

जम्हाई लेते   

अनमनी -सी जागे।

सूरज बाबा

पकड़ के उँगली

इसे घुमाते

फुदकती फिरती

कभी खिड़की,

कभी द्वारे ठिठके

भीतर झाँके।

ये चंचल गुड़िया

मौज मनाती -

छत पर सूखते

पापड़- संग

ये पसरी रहती 

या अचानक

अचार के सिर पे -

धप्पी कहती।

बादल संग कभी

होड़  लगाती,

आँखों को चुँधियाती,

हवा के संग

गलबहियाँ डाले  

दौड़ लगाती,

पेड़ों की छाँव जब  

उसे लुभाती

वह ठहर जाती,

होती उनींदी  

फूलों की गोद में ही

थककर सो जाती।

-0-

अनिता ललित

1/16 विवेक खंड, गोमतीनगर, लखनऊ-226010

ई मेल: anita.atgrace@gmail.com  

 

8 टिप्‍पणियां:

भीकम सिंह ने कहा…

धूप की गतिविधियों का बेहतरीन वर्णन प्रस्तुत किया है चोका के माध्यम से, हार्दिक शुभकामनाएँ ।

Rashmi Vibha Tripathi ने कहा…

वाह। धप्पी का बहुत सुंदर प्रयोग।
बहुत ही उत्कृष्ट चोका।

हार्दिक बधाई आदरणीया दीदी।

सादर

Anita Manda ने कहा…

अद्भुत

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

मेरे चोका को यहाँ स्थान देने हेतु संपादक द्वय का हार्दिक आभार!
बहुत समय बाद लिखा चोका आप सबको पसंद आया, इसके लिए आप सबका बहुत आभार!

~सादर
अनिता ललित

बेनामी ने कहा…

धूप का बहुत सुंदर मानवीकरण करता उत्कृष्ट चोका। हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर

बेनामी ने कहा…

बहुत खूब लिखा है, अत्यन्त उत्तम और सुन्दर कल्पना! प्रकृति का अच्छा वर्णन! आपको हार्दिक शुभकामनाएं :)

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

बहुत मनभावन चोका, मेरी बधाई

प्रीति अग्रवाल ने कहा…

वाह अनिता जी बहुत आनन्द आया पढ़कर, धन्यवाद!