शनिवार, 21 अक्तूबर 2023

1144

 वक़्त

 प्रीति अग्रवाल



ऐसी क्या जल्दी
दो पल तो ठहर
उतरने दे
मखमली पलों को
मन्द गति से
बेकल हृदय की
तलहटी में
आत्मसात हो जाए
मरुस्थल में
अविराम बहती
प्रेम की गंगा
वक्त की बागडोर
फिसली जाए
हाथ जोड़ूँ मनाऊँ
हम बेचारे
चंद पल हमारे
बस तेरे सहारे!
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5 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

बढ़िया चोका है प्रीति । बधाई हो। सविता अग्रवाल “ सवि “

प्रीति अग्रवाल ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद सविता जी!

प्रीति अग्रवाल ने कहा…

पत्रिका में स्थान देने के लिए सम्पादक द्वेय का हार्दिक आभार !

Krishna ने कहा…

उम्दा चोका...हार्दिक बधाई प्रीति।

प्रीति अग्रवाल ने कहा…

बहुत बहुत आभार कृष्णा जी।