ऐसी क्या जल्दी दो पल तो ठहर उतरने दे मखमली पलों को मन्द गति से बेकल हृदय की तलहटी में आत्मसात हो जाए मरुस्थल में अविराम बहती प्रेम की गंगा वक्त की बागडोर फिसली जाए हाथ जोड़ूँ मनाऊँ हम बेचारे चंद पल हमारे बस तेरे सहारे! -0-
5 टिप्पणियां:
बेनामी
ने कहा…
बढ़िया चोका है प्रीति । बधाई हो। सविता अग्रवाल “ सवि “
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बढ़िया चोका है प्रीति । बधाई हो। सविता अग्रवाल “ सवि “
हार्दिक धन्यवाद सविता जी!
पत्रिका में स्थान देने के लिए सम्पादक द्वेय का हार्दिक आभार !
उम्दा चोका...हार्दिक बधाई प्रीति।
बहुत बहुत आभार कृष्णा जी।
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