सोमवार, 27 मई 2024

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1-भीकम सिंह 

1

मैं ढूँढता हूँ 

प्रेम का स्थानापन्न 

उसका तौर

उसे उसमें देखूँ 

अपने चारों ओर।

2

मैंने देखे हैं 

विश्वास बॅंधे हुए

उन रिश्तों में 

जो उदास थे , पर 

चले सीधी सिम्तों में ।

3

सारा दिन ही 

बारह बजे रहे 

मिल ना पाया 

रोकके रखी धूप 

मैं साया हो ना पाया ।

4

मुद्दत हुई 

कोई आहट आ

तेरे पाँवों की 

क्या बसा ली है तूने 

दुनिया मचानों की ।

5

खूबसूरत है 

बचपन का प्रेम 

ज्यों कोहिनूर 

तलाशता राहों को 

नुमाइशों से दूर ।

0-

 

10 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर

सुशील कुमार जोशी ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Rashmi Vibha Tripathi ने कहा…

हमेशा की तरह सुन्दर रचना।
हार्दिक बधाई आदरणीय

सादर

बेनामी ने कहा…

अति सुंदर भाव!!

बेनामी ने कहा…

-प्रीति अग्रवाल

प्रीति अग्रवाल ने कहा…

बहुत सुंदर रचनाएँ!!

Krishna ने कहा…

बहुत सुंदर ताँका...हार्दिक बधाई।

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत सुन्दर ताँका। हार्दिक बधाई।

Sushila Sheel Rana ने कहा…

अति सुंदर तांका। भीकम जी को बधाई

भीकम सिंह ने कहा…

मेरे ताॅंका प्रकाशित करने के लिए सम्पादक द्वय का हार्दिक धन्यवाद और मनभावन टिप्पणी करने के लिए आप सभी का हार्दिक आभार।