डॉ भावना कुँअर
1
रिश्ते काँच- से
जरा ठसक लगी
चूर-चूर हो गए,
जोड़ना चाहा
रीते मन के प्याले
घायल हम हुए ।
2
चाकू की नोक
पेड़ों के सीने पर
दे जाती कुछ नाम ,
ठहरा वक्त
पेड़ भी हैं ,नाम भी;
पर, जीवन है कहाँ?
3
उतरे हम
दर्द के दरिया में
किनारा मिला नहीं,
आँसू तो सूखे
दिल का बोझ बढ़ा
आहों में दुआ रही।
4
भीगे हों पंख
धूप से माँग लूँ मैं
थोड़ी गर्मी उधार,
काटे हैं पंख
जीवन का सागर
कैसे करूँ मैं पार !
5
भर रहीं हैं
मन -भीतर बातें
तेरी वो सीलन-सी,
सीली दीवारें
टूटे - बिखरे किसी
ज्यों घर- आँगन की।
6
मन का कोना
ख़ुशबू नहाया -सा
सुध बिसराया- सा
न जाने कैसे
भाँप गया जमाना
पड़ा सब गँवाना।
7
छू गया कोई
गहराई से मन
खुले सब बंधन
सोई पड़ी थी
बरसों से कहीं जो
जागी आज चुभन।
8
गर्म है हवा
छीन ले गया कौन
ठंडे नीम की छाँव?
बसता था जो
साँसों में सबके ही
गुम हो गया गाँव।
-0-
-0-
12 टिप्पणियां:
बेहतरीन सृजन, सभी सेदोका बहुत सुन्दर ! डॉ भावना कुँवर जी आपको हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
सुन्दर भाव और शब्दों का बेजोड़ सम्मिश्रण | सभी सेदोका एक से बढ़कर एक| बधाई भवना जी |
शशि पाधा
बहुत भावपूर्ण ,सुन्दर सेदोका !मन का कोना ,भीगे हों पंख ..बेहतरीन !
बहुत बधाई भावना जी
भीगे हों पंख
धूप से माँग लूँ मैं
थोड़ी गर्मी उधार,
काटे हैं पंख
जीवन का सागर
कैसे करूँ मैं पार !
क्या खूब लिखती है आप। एक सदोका कमाल है।
आप के लेखन को नमन ।
Aap sabhi ka apar sneh paakar man gadgad ho gaya, ye sneh hi meri lekhni ki taakat hai bahut bahut aabhar
उम्दा भावपूर्ण सेदोका.....भावना जी बहुत बधाई!
भावना जी बहुत भाव पूर्ण सेदोका लिखे हैं आपने हार्दिक बधाई
सविता अग्रवाल "सवि"
bhaavpurn tatha sinder srajan...badhai bhavna ji.
दर्द में नहाए सभी सेदोका मन को छू गए, भिगो गए... उत्कृष्ट अभिव्यक्ति !
~सादर
अनिता ललित
बहुत भावपूर्ण ,सुन्दर सेदोका
Aap sabhi ka dil se eak bar fir aabhar...
बहुत बढ़िया सेदोका...हार्दिक बधाई...|
एक टिप्पणी भेजें