1
गोधूलि
बेला
घी का
दीपक जला
वे
हासोज्ज्वला
कन्याएँ आ
घिरतीं
गातीं ‘संझा आरती’ ।
2
लुढ़के
पड़े
आकाश के
बिछौने
तारों के
छौने
रात–माँ दुलराती
लोरी दे
के सुलाती ।
3
रात
बिताती
अलाव के
सहारे
मजूरों
बीच
शीत–कन्या बेघर
सिर नहीं
छप्पर ।
4
रिश्तों
की डोर
लिपट जाए
मन
खुल न पाए
पशु–पक्षी–मानव
सब को ही
लुभाए ।
5
बड़ी भीड़
है
आँसुओं के
गाँव में
यादों का
काँटा
अनायास आ
चुभा
छालों भरे
पाँव में ।
6
आज भी
शून्य
जि़न्दगी
का गणित
‘खाते’ हैं ख़ाली
जाने किस
झोंक में
डगर नाप
डाली !
7
फूलों की
बस्ती
लगी ये कैसी आग
फुँफकारा
नाग
झपटे
बूढ़े गीध
कौवों की
काँव–काँव !
8
उगे जो
पंख
उड़ गए
चोंगले
नीड़
वीरान
बूढ़ी
सूजी पलकें
ताकतीं
आसमान ।
-0-
6 टिप्पणियां:
सभी ताँका बहुत सुन्दर है आदरणीय सुधा दीदी को हार्दिक बधाई
लुढ़के पड़े
आकाश के बिछौने
तारों के छौने
रात–माँ दुलराती
लोरी दे के सुलाती
कितनी सुन्दर उपमा दी है नयी उपमाएं देने मेँ आपकी बराबरी कोई नहीं कर सकता
बधाई
रचना
बहुत खूब।
रात बिताती
अलाव के सहारे
मजूरों बीच
शीत–कन्या बेघर
सिर नहीं छप्पर ।
ati sunder ..eak nirali hi upma , anokhe andaaz mein ...aadarniy sudha ji ko manmohak taanka likhne ke liye hardik badhai.
sabhi taanka sundar ,mohak .."taaron ke chhaune" , "sheet kanya" , "chhaalon bhare paanv" aur "zindagii ka ganit" ..anupam !!
aadaraneeyaa sudhaa didi k prati
saadar naman ke saath
jyotsna sharma
सुधा दीदी जी, 'तलाश जारी है' ताँका-संग्रह के प्रकाशन पर ह्रदय से आपको बधाई ! आपकी लेखनी कभी भी बंद न हो, यही ईश्वर से प्रार्थना है!
सभी ताँका बहुत अच्छे लगे, विशेषकर -
'उगे जो पंख
उड़ गए चोंगले
नीड़ वीरान
बूढ़ी सूजी पलकें
ताकतीं आसमान ।'-मन को छू गया !
हार्दिक शुभकामनाओं सहित !
~सादर
अनिता ललित
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