1-कमला निखुर्पा
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थी मैं अभिधा
गिनाए जो तुमने
लक्षण मेरे
बन गई व्यंजना
खुद को पहचाना ।
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2-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
मैं निरुत्तर
तेरा नेह-विस्तार
धरा से नभ
नहीं पा सका पार
भिगो रही बौछार ।
-0-
रमेश कुमार सोनी
1
नदी अकेली
प्यास बुझाने दौड़ी
बस्ती बसाती
प्रदूषित हो जाती
बचाओ नहीं बोली।
धूप की कूची
भित्ति चित्र पेड़ों के
रोज बनाती
सदा से ही अधूरी
छोटी –बड़ी हो जाती।
-0-
10 टिप्पणियां:
सभी ताँका सुंदर व्यंजक भाव -प्रधान !!!
सादर बधाई !
सभी ताँका बहुत सुंदर
Sabhi rachnayen gahan abhivykti liye,sabhi ko hardik badhai...
एक से एक बढकर ।
आ.कमला जी
आ.रामेश्वर सर जी
आ.रमेश सोनी जी
आप सभी ने विशिष्ट भावनाओं की उम्दा अंदाज से प्रस्तुति की है...आप सभी को नमन !!
बहुत अच्छे ताँका !
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई !!
सभी ताँका बहुत सुंदर हैं,बधाई |
पुष्पा मेहरा
बहुत बढ़िया सभी तांका।
आप सभी रचनाकारों को बहुत बधाई।
सभी ताँका बहुत सुंदर मनभावन ..आप सबको हार्दिक बधाई ।
सभी तांका बहुत अच्छे हैं...| मेरी बधाई...|
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