डॉ .कविता भट्ट
पास में खड़ा
मोटर पुल नया,
पैदल पुल-
अब चुप-उदास
था लाया हमें पास ।
2
बचपन था-
जहाँ झूलता मेरा,
टँगा है मन
ननिहाल के उसी
आम के पेड़ पर।
3
जब से बना
पुल मोटर वाला,
बह रही है
अलकनंदा नदी
अब रुकी-थकी -सी ।
4
वाहन तुम
पुल पर दौड़ते
नदी-सी हूँ मैं
शान्ति से बहती
सब कुछ सहती
5
मानव नंगा
कैसे पाप धोएगी
काँवर गंगा !
उदारमना शिव
भावे आत्माभिषेक ।
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13 टिप्पणियां:
नदी और पुल के माध्यम से कोमल भावों की सुंदर अभिव्यक्ति के प्रभावी ताँका।बधाई डॉ कविता जी।"-शिवजी श्रीवास्तव।
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डॉ शिवजी श्रीवास्तव
सामयिक और उत्तम तांका
हार्दिक बधाई कविता जी
पुल...
सचमुच कितना कुछ कह सकते हैं शब्द अगर उनका संयोजन इतना खूबसूरत हो
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....हार्दिक बधाई कविता जी।
बहुत खूब....... बहुत ही सुन्दर ताँका....
कविता जी को हार्दिक बधाई
सराहनीय सृजन
वाहन तुम
पुल पर दौड़ते
नदी-सी हूँ मैं
शान्ति से बहती
सब कुछ सहती
बेहतरीन तांका
बधाई कविताजी
बधाई
वाहन,पुल और नदी की प्रतीकात्मक योजना ने इस ताँका को नई ऊँचाई प्रदान की है। अन्य ताँका भी बहुत अच्छे हैं। इसी तरह सृजनरत रहें
उत्तम,सुंदर अभिव्यक्ति।बधाई कविता जी।
कविता जी का टांका पढकर सुभद्रा कुमारी चौहान की बचपन वाली कविता याद आ गयी | नये मोटर के पुल में ने कितनी स्मृतियाँ याद करा दी| अत्यंत भावुकता से परिपक्त -बचपन को लेकर संग्र्हीय रचना है | मेरी शुभकामनाए आपकी कल्पना शक्ति के लिए | नये वर्ष में आप प्रसाद और महादेवी की श्रेणी में पहुंच जायेंगे | यह मेरा मन कहता है | श्याम -हिंदी चेतना
स्मृतियों को जीते हुए आज का यथार्थ. सभी ताँका भावपूर्ण, बधाई कविता जी.
सभी ताँका बहुत ही ख़ूबसूरत.. ..कविता जी को हार्दिक बधाई !!
सभी तांका बेहद खूबसूरत हैं, पर यह वाला बहुत भाया...
बचपन था-
जहाँ झूलता मेरा,
टँगा है मन
ननिहाल के उसी
आम के पेड़ पर।
मेरी हार्दिक बधाई...|
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