सुदर्शन रत्नाकर
1
बाँचते रहे
रात भर चिट्ठियाँ
चाँद -सितारे
धरा ने भेजी थीं जो
आसमान के लिए।
2
दुबक कर
बैठी धूप अँगना
चली जाएगी
सहमी - सहमी -सी
साँझ के आग़ोश में।
3
हवा के झोंके
लहरों का नर्तन
खिलते फूल
व्याकुल हों भागती
मिलने को आतुर।
4
बीमार रिश्ते
कब तक सहेजूँ
छूटते नहीं
शरीर से लिपटीं
चूसतीं जोंकों जैसे।
5
सिर पे बोझ
कठिन है जीवन
गाँव बालाएँ
रॉकेट के युग में
पनघट पे जाएँ।
6
तुम्हीं बताओ
कब तक सहूँ मैं
पीडा मन की
कोई तो राह होगी
काँटे बीनने होंगे।
-0-
1
उमस भरी
बीती है दोपहरी
साँझ सुहानी
लौट रहे हैं पक्षी
आसमान से
पूरी हुई दिन की
लम्बी उड़ान
पर नहीं थकान
अपना नीड़
सिमटा कर पंख
बच्चों के संग
कल की प्रतीक्षा में
चिंता- रहित
सोते हैं रात भर।
भोर होते ही
फिर जग जाएँगे
चहचहाते
नहीं है तेरा-मेरा
नभ की ओर
उड़ेंगे एक साथ
बंधनमुक्त
न कोई कशमकश
पूर्णरूपेण
जीवन से संतुष्ट
वे परिन्दें हैं
प्यार से रहते हैं
प्यार समझते हैं।
-0-
सुदर्शन रत्नाकर,ई-29,नेहरू ग्राउण्ड ,फ़रीदाबाद 121001
मो.9811251135
-0-
9 टिप्पणियां:
बहुत ही उत्कृष्ट तांका और चोका
🙏🙏
Eak se badhkar eak bahut bahut badhai
डॉ भावना जी, सत्या जी प्रतिक्रिया के लिंए हार्दिक आभार।
सभी ताँका और चोका बहुत उम्दा और भावपूर्ण. रत्नाकर जी को ढेरों बधाई.
Best
बहुत सुंदर भावपूर्ण तांका और चोका ले लिए आपको हार्दिक बधाई।
जेन्नी जी ,कृष्णा जी, कश्मीरी लाल जी हार्दिक आभार
बहुत अच्छे तांका और चोका है | बहुत बधाई...|
बहुत ही उम्दा तांका और चोका.. बहुत-बहुत बधाई !
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