प्रीति अग्रवाल
1.
मन बावरा
लाख जतन करूँ
समझ न पाए
इत उत क्यों डोले
ये सब्र क्यों न पाए!
2.
एकाकीपन
भयानक विपदा
बड़ी त्रासदी
उपचार सरल
सप्रेम, सद्भावना।
3.
भँवरे की गुंजन
या सरसराहट
पत्तों की जैसे
यूँ कानों में कहते
तुम मीठी बतियाँ।
4.
माँगके देख
सब कुछ मिलेगा,
नारी केवल
माँगे अपनापन,
प्रेम और सम्मान!
5.
तुमने किया
इज़हार प्रेम का
झूमा यूँ दिल
रुक गई ज़मीन
झुक गया आसमां।
6.
दान में मोती
दिए होंगे ज़रूर
तुम्हें जो पाया
अलबेला सजन
जीवन अनमोल।
7.
जीवन एक
अनबूझ पहेली
बांच न पाऊँ
क्यों न मैं पानी बन
बस बहती जाऊँ।
8.
कौन हो तुम
अपने से मुझको
लगते हो क्यों
क्या पहले मिले हैं
क्या पुराने हैं साथी?
9.
चारों ही ओर
है चहल-पहल
मन क्यों खाली
किसको है खोजता,
आखिर क्या चाहता?
10.
छिल जाते हैं
पथरीली राहों में
नदी के पाँव
बस एक ख़याल
सागर देखे राह!
11.
रतिया सारी
तारों को गिन गिन
हमने काटी
जो रह गए कल
वो आज गिन लेंगें !
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9 टिप्पणियां:
सुन्दर ताँका, हार्दिक शुभकामनाएँ ।
एक से बढ़कर एक सुन्दर ताँका
हार्दिक शुभकामनाएँ प्रीति जी
सभी ताँका बेहतरीन।कोमल भावनाओं की सशक्त अभिव्यक्ति।बधाई प्रीति जी।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...हार्दिक बधाई प्रीति जी।
आदरणीय भाई साहब, पत्रिका मे स्थान देने के लिए हार्दिक आभार!
भीकम सिंह जी, पूर्वा जी, शिवजी भैया और कृष्णजी, मेरी लेखनी को बल प्रदान करती आपकी स्नेहिल टिप्पणी के लिए हृदयतल से आभार!
छिल जाते हैं
पथरीली राहों में
नदी के पाँव
बस एक ख़याल
सागर देखे राह!
सुंदर रचना,सकरात्मक एवं प्रोत्साहित करने वाले भाव ।
बधाई।
आभार आदरणीय!
उम्दा तांका के लिए मेरी बधाई स्वीकारें |
बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण ताँका! हार्दिक बधाई प्रीति जी!
~सादर
अनिता ललित
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