ताँका- रश्मि विभा त्रिपाठी
1
अश्रांत श्रम
प्रेमिल हथेली का
प्रार्थनाओं से
करे नव-निर्माण
मेरे जिलाए प्राण।
2
बड़भागिनी
पाए प्रिय- दर्शन
मणिकांचन
मिला प्रेम पावन
मन्दाकिनी- सा मन।
3
मधुर वाणी
मुझे दे नव आस
बोलें प्रिय जो
अहा! बिखरे हास
अतुलित प्रभास।
4
आँख खुलते
करूँ मैं अगुआई
पलक- द्वार
प्रिय की याद आई
पा दर्शन हर्षाई।
5
प्रिय शशि- से
आकर बरसाई
अपरिमित
आशीष की जुन्हाई
अमा झाँकी, लजाई।
6
सर्वसुख की
तुमने दे दी बलि
अपरिमित
प्राणों में इत्र घोले
प्रणय- पुष्पांजलि।
7
प्रिय तुम्हारी
मंगलकामनाएँ!!
पुनर्जीवन
मेरे प्राण पा जाएँ
मोल कैसे चुकाएँ।
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6 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर । उत्कृष्ट रचनाधर्मिता।
बहुत सुंदर ताँका। हार्दिक बधाई रश्मि जी।
आदरणीया रत्नाकर दीदी और कविता दीदी का हार्दिक आभार।
ताँका प्रकाशन के लिए सम्पादक जी की हृदय तल से आभारी हूँ।
सादर 🙏
बहुत सुन्दर-सुन्दर ताँका, बधाई रश्मि जी.
सुन्दर तांका के लिए बहुत बधाई रश्मि
सुंदर प्रेमसिक्त ताँका सभी! हार्दिक बधाई रश्मि जी!
~सादर
अनिता ललित
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