मंगलवार, 22 अप्रैल 2025

1213-माहिया

 

रश्मि विभा त्रिपाठी

 


1
जिसको दिल सौंपा था
उसने सीने में
खंजर ही घोंपा था।
2
हर पल ही ख़्याल किया
बनके संग चले
तुम मेरी ढाल पिया।
3
बाहों का हार मुझे
तुम पहनाकरके
दे दो निस्तार मुझे।
4
नयनों में पीर दिखी
आकुल अधर हुए
कैसी तकदीर लिखी।
5
तुमको छूके आई
पुरवाई तेरी
ख़ुशबू लेके आई।
6
जब भी है मुरझाता
तेरी ख़ुशबू से
मन फिर से खिल जाता।
7
बेशक मज़बूर रही
मैं हूँ दूर भले
दिल से ना दूर रही।
8
हर आस अधूरी है
सात समंदर की
तुमसे जो दूरी है।
9
तुम सपनों में मिलते
मन के मरु में प्रिय
पाटल सौ सौ खिलते।
10
बस ये अहसान करो
अपनी पीर सभी
तुम मुझको दान करो।
—0—

11 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

बहुत सुन्दर माहिया रचे है रश्मि जी, हार्दिक शुभकामनाएँ।

अनिता मंडा ने कहा…

सुंदर भाव व लयपूर्ण माहिया रचने के लिए रश्मि जी को बहुत बधाई। आपका शब्द भंडार बहुत समृद्ध है।

Sushila Sheel Rana ने कहा…

प्रेम के वियोग पक्ष की लयात्मक, सुंदर अभिव्यक्ति माहिया छंद के माध्यम से। प्रेम की वेदना, कसक अंतर मन को छू गई रश्मि जी। सुंदर सृजन के लिए बधाई 💐

Krishna ने कहा…

सुंदर सृजन के लिए हार्दिक बधाई रश्मि जी।

Rashmi Vibha Tripathi ने कहा…

त्रिवेणी में मेरे माहिया को स्थान देने हेतु आदरणीय सम्पादक द्वय का हार्दिक आभार।
आप आत्मीय जन की टिप्पणी की हृदय तल से आभारी हूँ।
सादर

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

सभी माहिया बहुत भावपूर्ण। हार्दिक बधाई रश्मि जी

dr.surangma yadav ने कहा…

बहुत प्यारे माहिया ।बधाई रश्मि जी।

Gunjan Agarwal ने कहा…

अप्रतिम माहिए आदरणीय 👌💐👌💐

बेनामी ने कहा…

बहुत सुंदर माहिया!

~सादर
अनिता ललित

बेनामी ने कहा…

सुंदर माहिया की रचना के लिए रश्मि जी को हार्दिक बधाई ।

Vibha Rashmi ने कहा…

बहुत भावपूर्ण माहिया सृजन प्रिय रश्मि विभा । शुभाशीष लो ।