डॉ. सुधा गुप्ता
1.
जैसे ही ज़रा
पंख फरफराए
उड़े, छोड़ ममता
घोंसला रोता
धीरज बँधाने को
कहीं, कोई न होता।
2
टूटे भरम
नदी हँसती रही
घिरे आग में हम
झूठे सपन
वो मख़मली फूल
बने कैक्टस शूल
3
फूलों का ढेर
जीवन भर सींचा
मोहक था बग़ीचा
वक़्त का फेर
फूलों का उपवन
बना पाहन-वन
4
प्यास थी घनी
रूठे कुएँ, पोखर
सरिता अनमनी
दो घूँट जल
पाने को तरसे
रहे सदा विफल।
-0-
17 टिप्पणियां:
आदरणीया सुधा जी द्वारा रचित ये सेदोका जीवन के अनुभव और संवेदनशीलता को प्रतिबिंबित करते हैं| उन्हें हार्दिक बधाई |
शशि पाधा
सुन्दर सेदोका , सु. व.
सुंदर मनोहारी कल्पनाएँ, गहरी संवेदनाएँ लिए, बहुत सुंदर सृजन।
विशेष
जैसे ही ज़रा
पंख फरफराए
उड़े, छोड़ ममता
घोंसला रोता
धीरज बँधाने को
कहीं, कोई न होता।
सुंदर मनोहारी कल्पनाएँ, गहरी संवेदनाएँ लिए, बहुत सुंदर सृजन।
विशेष
जैसे ही ज़रा
पंख फरफराए
उड़े, छोड़ ममता
घोंसला रोता
धीरज बँधाने को
कहीं, कोई न होता।
अनुपम सृजन ... मर्मस्पर्शी सेदोका सभी !
प्यास थी घनी
रूठे कुएँ , पोखर
सरिता अनमनी ....
सींच-सींच कर खुद प्यासी सरिता ने भीतर तक भिगो दिया !!
आ. दीदी को सादर नमन !!
टूटे भरम
नदी हँसती रही
घिरे आग में हम
झूठे सपन
वो मख़मली फूल
बने कैक्टस शूल ।
सुधा दी मार्मिक सेदोका । सार्थक लेखन के लिये बधाई ।
दार्शनिक भाव बोध संयुक्त,जीवन के करुण यथार्थ को अभिव्यंजित करते सुन्दर सदोका।आदरणीय सुधा जी को नमन।
शिवजी श्रीवास्तव
बेहद सुंदर । संवेदनशील सार्थक
बेहद सुंदर । संवेदनशील सार्थक
अप्रतिम लेखनी है आदरणीया सुधा जी को...| उनको नमन क साथ ही बहुत बधाई
दार्शनिक बोध का स्पर्श लिये,करुणा के भाव से युक्त सुन्दर मार्मिक सदोका।आदरणीय सुधा जी की लेखनी को नमन।
प्यास थी घनी
रूठे कुएँ, पोखर
सरिता अनमनी
दो घूँट जल
पाने को तरसे
रहे सदा विफल।
आदरणीया सुधा गुप्ता जी सभी सदोका सार्थक एवं मर्मस्पर्शी । दीदी जी आपको और आपकी लेखनी को सादर नमन करती हूँ ।
best
सुन्दर सेदोका |हार्दिक बधाई |
अति सुन्दर लेखनी है आपकी आदरणीया ...मन में थम जाती है ऐसी संवेदनाएँ!
आपको तथा आपकी लेखनी को सादर नमन !
गहन अनुभूति की सहज अभिव्यक्ति
एक टिप्पणी भेजें