रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
1
मन-मीत चले आओ
दो पल बाकी हैं
सीने से लग जाओ।
2
तन से तुम दूर रहे
पर सूने मन में
तुम ही भरपूर रहे ।
3
बस इतना जाने हैं-
इस जग में तुमको
हम अपना माने हैं।
4
जाने कब आओगे !
बाहों में खुशबू
बनकर खो जाओगे।
5
कुछ समझ नहीं आता
कितने जन्मों का
मेरा तुमसे नाता ।
6
जब अन्त इशारा हो
होंठों पर मेरे
बस नाम तुम्हारा हो।
7
जिस लोक चला जाऊँ
चाहत इतनी-सी-
तुमको ही मैं पाऊँ।
8
तुमको जब पाऊँगा-
पूजा क्या करना
मंदिर क्यों जाऊँगा।
9
चन्दा तुम खिल जाना
सूनी रातें हैं
धरती से मिल जाना।
10
नभ आज अकेला है
प्यासी धरती से
मिलने की बेला है।
11
जीवन में प्यास रही-
जो दिल में रहते
मिलने की आस रही।
12
चित्र; कमला निखुर्पा |
बादल तुम ललचाते
आकर पास कभी
क्यों दूर चले जाते ।
13
धरती ये प्यास-भरी
बादल रूठ गए
मन की हर आस मरी।
14
तुमको पा जाऊँगी
कब तक रूठोगे
हर बार मनाऊँगी।
15
इस आँगन बरसोगे
प्यासा छोड़ मुझे
तुम भी तो तरसोगे।
-0-
15 टिप्पणियां:
सुन्दर
कुछ समझा नहीं आता
कितने जन्मों का
मेरा तुमसे नाता ।
बहुत सुन्दर ,मर्मस्पर्शी माहिया । हार्दिक बधाई लें हिमांशु भाई जी ।
भावपूर्ण हैं माहिया, हार्दिक बधाई महोदय।
बहुत ही सुंदर भावपूर्ण माहिया ।
हार्दिक बधाई आदरणीय भैया ।
बहुत ही सुंदर भावपूर्ण माहिया ।
हार्दिक बधाई आदरणीय भैया ।
वाह!!हृदयस्पर्शी एवं मनमोहक माहिया....आदरणीय यह माहिया सदाबहार रहेंगे। नमन
बहुत ख़ूब !!
लय, भाव से परिपूर्ण माहिये मन को छू गये।
प्यार से लबालब | सर्वथा गेय |सु. व.|
मनमोहक, ह्र्दयस्पर्शी माहिया आदरणीय ..सादर नमन ।
जिस लोक चला जाऊँ
चाहती इतनी-सी-
तुमको ही मैं पाऊँ।
तुमको जब पाऊँगा-
पूजा क्या करना
मंदिर क्यों जाऊँगा।
बहुत खूबसूरत माहिया !गहरे पावन प्रेम के सागर में कँवल से खिल रहे हैं ये माहिया ...हर फूल की एक अलग ही छवि है बहुत - बहुत बधाई भैया जी !
प्रेम रस भीने बहुत सुन्दर ,सरस माहिया !
हार्दिक बधाई भैया जी !!
बहुत सरस मनमोहक माहिया का सृजन किया है भाई कम्बोज जी | हार्दिक बधाई |
प्रेम रस में भीगे मर्मस्पर्शी माहिया। बहुत-बहुत बधाई भाईसाहब।
बहुत ही भावपूर्ण और खूबसूरत।
जब अन्त इशारा हो
होंठों पर मेरे
बस नाम तुम्हारा हो।
इतना प्रेम जहाँ हो, वहाँ किसी और दुआ की ज़रूरत ही नहीं रह जाती...| अप्रतिम...|
बाकी सभी माहिया भी बहुत ही ज़्यादा पसंद आए...|
ढेरों बधाई...|
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