रविवार, 26 मार्च 2023

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 भीकम सिंह 

 गाँव  - 70

 बेहद खास 

ना जानें कहाँ गये

खेतों के राग 

वर्षों से चुपचाप

जिन्हें सुनके 

सजीव हो उठती 

मेड़ की घास 

नायिका की तरह

खिलखिलाती 

और लहलहाती 

मौसम के चौमास 

 गाँव  - 71

 

सन सो रहा 

खेतों के ताल पर 

दीर्घ निद्रा में 

उसके कम्बल में 

लगी हवाएँ 

कुलबुलता सन

खोल रहा है 

मटमैली टाएँ

ये गंध भरा 

एक सिलसिला है 

जो कार्तिक में आए ।

 गाँव- 72

 

बैठा है खेत 

घास के मखमली 

टुकड़ों पर

पेड़ों से सर -सर

निकली हवा 

सरसों को छू-कर

यादें जागी हैं

गंध में बहकर

गाँव का मन

बाहर आना चाहे

दर्द को सहकर ।

 गाँव  - 73

 अंक में लेके 

दही-छाछ के लोटे 

गाँवों में फिर

प्रीत के दिन लौटे 

घिरे घूँघट 

काँपते-से हाथों से 

दृष्टि समेटे 

बेशरम बुड्ढों के

लग जाते त्यों 

बुझती-सी आँखों पे

ऐनक मोटे-मोटे ।

 गाँव  - 74

 खेतों को देके

नये-नये सपने

चली गयी है 

बरसात की नदी ,

बियाबानों से 

निभा रही है रिश्तें 

मूँदे पलकें 

ज्यों रूमानियत में 

चले हल - के

किनारों की अय्याशी 

काँस में से झलके 

 गाँव  - 75

 

बरबस ही 

बादल घिर आये 

कल परसों 

फूली नहीं समाई 

पीली सरसों 

भीग कर चिपका

कुर्ती-सा पत्ता 

तिर्यक हँसी, हँसा 

भृंग का पट्ठा 

बेशरमी- सी छाई

सरसों शरमाई ।

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8 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

भीकम जी गाँव पर रचे सभी ताँका एक से एक बढ़कर हैं हार्दिक बधाई।

surbhidagar001@gmail.com ने कहा…

बहुत सुंदर, बहुत बधाई आपको।

Gurjar Kapil Bainsla ने कहा…

आपके चोका शहर में रहते हुए भी गाँव की यात्रा करवा देते है।
सारे उत्कृष्ट चोका!

dr.surangma yadav ने कहा…

वाह! बहुत सुन्दर सर! बधाई।

भीकम सिंह ने कहा…

मेरे चोका प्रकाशित करने के लिए सम्पादक द्वय का हार्दिक धन्यवाद और खूबसूरत टिप्पणी करके मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए आप सभी का हार्दिक आभार ।

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

गाँव के चित्र साकार करते सभी चोका! बहुत ख़ूब आदरणीय!

~सादर
अनिता ललित

Sonneteer Anima Das ने कहा…

अति उत्कृष्ट भाव में चमत्कृत करती लेखनी 🌹🙏

बेनामी ने कहा…

भीकम सिंह जी के ग्रामीण परिवेश के सभी ताँका सृजन बेहतरीन । हार्दिक बधाई ।
विभा रश्मि