1-ताँका
कृष्णा वर्मा
1
भुलाना होता
तो भुला बैठे होते
जन्मों पहले
मुड़-मुड़के जन्म
न लेते तेरे लिए।
2
बरबस ही
उड़ते पंछी देख
कोई संदेशा
तुम्हें भिजवाने को
फड़क उठें होंठ।
3
क्या पता कब
पूरा हो यह यज्ञ
बीत रही है
उमर की सामग्री
यूँ देते आहुतियाँ।
4
लहर की भाँति
लगे थे किनारे से
तुम्हें देखके
ऐसा फलाँगा तट
कि रहे न नदी के।
-0-
2-चोका
सविता अग्रवाल 'सवि'
1-सर्दी का चूल्हा
सूर्य से आई
भोर नहाई धूप
ओढ़ चादर
धरा पर उतरीं
रवि किरणें
सखियाँ इठलाईं
घर-आँगन
बुहार, निपट के
अटारी चढ़ीं
ले, मटर पिटारी
गाजर- मूली
मूँगफली की थैली
किस्सों की थाली
ताली दे-दे बजातीं
दुःख बाँटती
चढ़ती धूप संग
खटिया बैठ
गुड़ -रेवड़ी खातीं
टोकरी झाड़ें
धूप की गर्मी सेंक
हाथ मलतीं
प्रभु- भजन गातीं
प्रेम में डूबी
चूल्हा जलातीं और
स्नेहपूर्वक
सब्ज़ी छोंक लगातीं
आटे की लोई
बेलन- करें गोल
तवे पे डाल
कोयलों पर सेंक
रोटी बनातीं
धूप में बैठाकर
परिवार – पालतीं।
-0-
2-माँ से मिलन
नदी किनारे
बैठी, राह ताकती
जाना है पार
विचलित था मन
बंदिश आस
ईश्वर आए याद
समक्ष देखा
तैरती नाव आई
आस- सी जगी
मुख मुस्कान छाई
नाविक आया
किनारे बाँध नाव
मुझे बुलाया
मन भावों को पढ़
नाव बैठाया
बाट जोहती, माँ से
मिलन करवाया।
-0-
3-गाँव की छोरी
गाँव की छोरी
स्वछन्द मन घूमे
धानी चुनरी
बदन से लिपटी
दौड़ लगाती
वन- वन विचरे
सखियों संग
लकडियाँ चुनती
उठा, गठरी
मतवाली चाल से
घर को आती
भाई- बहन संग
अभावों में भी
छल कपट बिन
खुशियों संग जीती।
-0-
ईमेल: savita51@yahoo.com
9 टिप्पणियां:
आदरणीय भाई कम्बोज जी और स्नेही हरदीप जी का हृदय से धन्यवाद, मेरे चोका को इस पत्रिका में स्थान देने के लिए।आप सभी मित्रों की रचनायें पढ़कर प्रेरणा मिलती रहती है कुछ लिखने की। कृष्णा जी के सुंदर प्रेरित करते ताँका हैं उन्हें इस सृजन पर बधाई। सविता अग्रवाल “ सवि”
बहुत सुंदर ताँका और चोका।
हार्दिक बधाई आदरणीया कृष्णा दीदी और सविता जी को
सादर
बीत रही उम्र की सामग्री.... सुंदर तांका रचे हैं कृष्णा जी ने!
सविता जी के सभी चोका सादगी की सुगंध लिए, उत्कृष्ट!
आप दोनों को बधाई!!
अच्छे ताँका एवं चोका-आप द्वय को हार्दिक बधाई।
बहुत सुंदर ताँका और चोका। दोनों सृजनकर्ता को
हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
बहुत सुंदर चोका...हार्दिक बधाई सविता जी।
सुंदर सृजन के लिए कृष्णा जी एवं सविता जी को बधाई
सभी रचनाएँ भावपूर्ण एवं मर्मस्पर्शी बन पड़ी है
मुड़-मुड़के जन्म / न लेते तेरे लिए।
बीत रही है / उमर की सामग्री /यूँ देते आहुतियाँ।
बहुत ही सुंदर
और
'गाँव की छोरी' ने 'माँ से मिलन' की चाह में 'सर्दी का चूल्हा' जलाया
सुन्दर सृजन 🙏🌹
बहुत सुंदर हाइकु हैं। हार्दिक बधाई ।सविता अग्रवाल “सवि”
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