शनिवार, 14 अक्तूबर 2023

1143-जीवन चक्र

 सविता अग्रवाल 'सवि ' कैनेडा 


मेंहदी रची

दुल्हन के हाथों में

रंग छोड़ती

अरमान जगाती

पी से मिलन

फूली नहीं समाती

अगले पल

बाबुल का आँगन

सोच- नयन

झर -झर बहाती

माता की सीख

ह्रदय में रखती

डोली में बैठ

पराये घर जाती

उसी में जीती

सुख -दुःख सहती

वर्ष बिताती

घर भी सँभालती

बेटी जन्मती

पलकों पे रखती

बड़ी होती तो

दुल्हन सा सजाती

माँ की शिक्षाएँ

बेटी की झोली -डाल

विदाई देती

थककर बैठती

यही सोचती

जीवन का चक्र है

सदा निभाना हमें

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11 टिप्‍पणियां:

प्रीति अग्रवाल ने कहा…

वाह! एक औरत का जीवन चक्र कितनी सुंदरता और सहजता से दर्शाया है।अनेकों बधाई सविता जी!

बेनामी ने कहा…

भाई कम्बोज जी का हृदय से आभार मेरे चोका को पत्रिका में प्रकाशित करने के लिए। प्रिय प्रीति तुम्हारी प्रतिक्रिया से लेखनी को बल मिलता है धन्यवाद। सविता अग्रवाल “सवि”

भीकम सिंह ने कहा…

बहुत सुन्दर चोका, हार्दिक शुभकामनाएँ ।

बेनामी ने कहा…

जीवन का सत्य, पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आ रहा है। बहुत सुंदर। हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर

बेनामी ने कहा…

भीकम जी और सुदर्शन रत्नाकर जी आपकी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।सविता अग्रवाल “सवि”

dr.surangma yadav ने कहा…

बहुत सुंदर चोका।हार्दिक बधाई आपको।

बेनामी ने कहा…

हार्दिक आभार सुरंगमा जी।सविता अग्रवाल

Krishna ने कहा…

बहुत सुंदर चोका...हार्दिक बधाई सविता जी।

बेनामी ने कहा…

हार्दिक आभार कृष्णा जी। सविता अग्रवाल

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

बहुत सुंदर चोका!

~सादर
अनिता ललित

बेनामी ने कहा…

धन्यवाद अनिता जी। आपकी प्रतिक्रिया बल देती है। सविता अग्रवाल