सुदर्शन रत्नाकर
1
नारी की सोच
सागर- सी गहरी
फिर भी वो बेचारी,
क्यों होता ऐसा
तिल -तिल जलती
ख़ुशियाँ वो बाँटती ।
2
द्वार खुले हैं
ठंडी हवा के झोंके
छू रहे तन –मन,
फिर भी कहीं
तपिश है भीतर
अरक्षित होने की ।
-0-
4 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (01-12-2014) को "ना रही बुलबुल, ना उसका तराना" (चर्चा-1814) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
नारी की सोच
सागर- सी गहरी
फिर भी वो बेचारी,
क्यों होता ऐसा
तिल -तिल जलती
ख़ुशियाँ वो बाँटती ।
bahut hi sunder soch
badhai
rachana
dil kii gaharaaiyon se niklii aur dil ko gahare tak chhootii rachanaayen ...haardik badhaaii didi ...
saadar
jyotsna sharma
bahut hi sunder prastuti....badhai dil se didi.
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