1-माहिया
परमजीत कौर 'रीत'
1
खामोशी कहती है
यादें सावन बन
आँखों से बहती हैं
2
आँगन के फूलों की
याद बहुत आए
नानी-घर झूलों की
3
नदिया- सा मन रखना
रज हो या कंकर
सब हँस-हँसकर चखना
4
नभ में
मिलती राहें
पाँव धरा पे जो
मंजिल थामे बाहें
5
क्या खोना ,क्या पाना
अपनों के बिन ,जी!
क्या जीना,मर जाना
-0-
2-चोका
पुष्पा मेहरा
लिपटा क्या है
इस कलेवर में
आया कहाँ से
है ज्ञात ना मुझको
बस ज्ञात है-
भिन्न रूपों-नातों से
आ जुड़े सभी
कहीं न कहीं हम
भिन्न भावों से,
जातिगत भेद से,
धर्म बंध से
मिल गए हैं जैसे
जन्म लेते ही
मधुरिम वात्सल्य,
ममता-डली
बिन माँगे ही हमें
निकटतम
निज माता-पिता से ,
प्रिय-अगाध
तन्द्रिल औ मायावी,
खोये अहं में
धीरे–धीरे जागे तो
मिली रौशनी
अनजाने सूर्य से
मिली चाँदनी
शुभ्रतम चाँद की,
मिलता सुख
संदली हवाओं का
निर्विरोध ही,
बढ़ते रहे सदा
दृश्य पथ पे
नियति-डोर थाम
लिपटे हुए
अहं मद में रमे
बेचते रहे
सपने,सुहावने
खरीद कर
सुख-राशि क्षणिक,
मन उनींदा
घिरा रहा तम से
दिखी ना राहें
मतवाले प्रेम की,
बिछड़े साथी
ज्यों नदी के किनारे
लहरें ऊँची
तोड़ती रहीं बाँध
सद्भावना का
जलस्तर स्वार्थ का
बढ़ता रहा
धँसते गए, डूबे,
गुह्य तल में
जो था घाना अँधेरा
मिला न द्वार
न मिली झिरी कोई,
न ही प्रकाश कभी ।
-0-
pushpa.mehra@gmail.com
8 टिप्पणियां:
beautiful
मेरी रचना को स्थान देने हेतु सम्पादक द्वय का आभार,प्रीत जी के माहिया सभी अच्छे लिखे हैं बधाई|
पुष्पा मेहरा
सुन्दर ,मधुर माहिया और गहन चिंतन भरा चोका !
दोनों रचनाकारों को हार्दिक बधाई !!
सुन्दर माहिया और बेहतरीन चोका के लिए आप दोनों को बहुत बधाई...|
बहुत सुंदर सार्थक माहिया और चोका ..आप दोनों को हार्दिक बधाई ।
सुंदर सार्थक रचनाएँ....आप दोनों को बहुत-बहुत बधाई।
पुष्पा जी आप के चोके में आपने जीव का कलेवर में आने से लेकर उसकी पूरी जीवन यात्रा का वर्णन जो किया है आप के गहरे अध्ययन को दरशाता है । कैसे चकांचौंध में जीव फसकर फंसता चला जाता है ।बाहर आने का द्वार मिलता ही नहीं ।
अद्भुत । हार्दिक बधाई ।
परम जीत जी आप के माहिया भी बहुत सुन्दर हैं । शिक्षा भरे भी - जैसे नदिया सा मन रखना / रज हो या कंकर / सब हँस हँस कर चखना ।बहुत अच्छा लगा ।बधाई जी आप को भी ।
मेरे चोका को पसंद कर अपने जीवन के व्यस्त क्षणों से कुछ समय निकाल कर अपने अनमोल शब्दों में टिप्पणी देने के लिए आ.कश्मीरी लाल जी,ज्योत्स्ना शर्मा,सुनीता,प्रियंका,कृष्णा व कमला जी का आभार|कभी-कभी प्रकृति,परिवार, त्यौहार आदि विषयों से अलग उठे विचारों को शब्दों में बाँधने का मन करता है |
पुष्पा मेहरा
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