बुधवार, 13 सितंबर 2017

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अज्ञात भय
कमला घटाऔरा

 वह नहीं चाहती थी कि बच्चों के साथ घूमने जा बुढ़ापे में घूमने- फिरने का कोई आनन्द तो  है नही।वहाँ का विशाल मंदिर देखने का बड़ी बेटी का बहुत मन था  वह उसे  मना भी तो नहीं  कर सकती थी। बच्चों की ख़ुशी के लिए उसे आना पड़ा।मंदिर देख- घूम फिर कर वे एक जगह थककर सुस्ताने को बैठ गईं।  एक बेटी अपने  बच्चों के लिए कुछ लेने एक ओर  चली गई तथा दूसरी बेटी मंदिर की पूजा अर्चना देखने चल दी। इतनी दूर मंदिर देखने आ हैं साथ में पूजा भी देख लें तो सोने पे सुहागा।

माँ को उनके इंतजार का एक एक पल भारी हो रहा था थोड़ी देर कह कर ग। अभी तक एक भी लौटकर नहीं आई ।भय का साँप उन्हें अपनी और आता दिखाई देने लगा। अनजाने लोगों की आती- जाती भीड़ देख वह और भयभीत होने लगीं। कहीं उनकी बेटियाँ इधर उधर न हो जाएँ ,साथ के छोटे बच्चों को सँभालते - सँभालते माँ को  भूल ही न जाएँ। वह किसे पुकारेगी ? वह कहाँ ढूँढेगी उन्हें ? तरह -तरह के विचार आकर उसे  चिंतित करने लगे। वह दहल -सी ग

इस समय याद आ ग उसे अपनी खो हु दबंग भाभी ,जिसने कभी अपनी जवानी में घर घुसे चोरों को डंडे से मार मारकर खदेड़ दिया था ,लेकिन बुढ़ापे में अपने बच्चों से मिलने बड़े शहर क्या गई, तो लौटकर घर ही न पहुँची, जबकि साथ में भैया भी थे। वह टॉयलेट ही ग थी। वहीं से कहीं गायब हो ग। सारी  ट्रेन छान मारी उस का कोई अता- पता न चला। वर्षों उस की तलाश जारी रही। नहीं मिली सो नहीं मिली। …

यह सोचकर वह और डर ग। वह अकेली किस ओर पहले जाए ,छोटी को मंदिर से बुलाने गई, तो बड़ी आकर उसे यहाँ तलाश करेगी ,जहाँ बैठाकर ग है। दोनों हाथ पकड़कर ऊँची -नीची जगह से चलाकर लाई हैं कि कहीं ठोकर न लग जा। वह बार -बार अपना चश्मा साफ करके कभी इस ओर,  कभी उस ओर  उन के आने की राह देखने लगी। क्या करे ?अब दिन भी ढलने लगा था। बच्चे कहाँ जान पाते हैं माँ की इन चिंताओं को। माँ तो बस माँ है चिंताओं में ही कट जाती उम्र उसकी  
उतरी संध्या
डरी सहमी-सी माँ
अज्ञात भय।


16 टिप्‍पणियां:

Shashi Padha ने कहा…

चिंता हर वृद्ध का स्वभाव बन जाता है , किन्तु बच्चों को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए । एक प्रेरक रचना । बधाई कमला जी ।

Dr. Surendra Verma ने कहा…

बहुत कलात्मक हाइबन ।

Amit Agarwal ने कहा…

Bahut sundar!

Pushpa mehra ने कहा…



बहुत सुंदर कमला जी बधाई |

पुष्पा मेहरा

ज्योति-कलश ने कहा…

उम्र के मनोविज्ञान को व्यक्त करता सुन्दर भावपूर्ण हाइबन !
हार्दिक बधाई आदरणीया !!

Sudershan Ratnakar ने कहा…

बहुत सुंदर

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

एक वृद्ध की मनोदशा का सटीक वर्णन. इस कथा के अंत को जानने की उत्सुकता रह गई. दोनों बच्चियां मिली या नहीं? बहुत अच्छा लिखा है आपने बधाई कमला जी.

Unknown ने कहा…

आप सब का हाइबन पसंद करने लिए आभार। मुझे उत्साह और ऊर्जा से भर दिया। जेन्नी जी को आगे की कहानी जानने की उत्सुकता है। हाँ जी बच्चियाँ मिली। माँ की डांट भरपूर खाई। एक पात्र मैं भी थी वहाँ।
भीड़ में अपनों से बिछुड़ जाने का भय ही लिखना था मुझे।

Jyotsana pradeep ने कहा…

सुन्दर तथा सजीव वर्णन किया है आपनें एक वृद्ध माँ के अपनों से बिछुड़ जानें के भय का ...
बहुत- बहुत बधाई कमलाजी!

सुनीता काम्बोज ने कहा…

मन के भाव प्रकट करता शानदार ह्रदयस्पर्शी हाइबन कमला जी हार्दिक बधाई ।

Krishna ने कहा…

बहुत सुंदर मर्मस्पर्शी हाइबन कमला जी हार्दिक बधाई।

Santosh Garg ने कहा…

सच में ऐसा ही होता है कमला जी । अंत में.. डा.जेन्नी ने ठीक लिखा है । हार्दिक शुभकामनाएं

मंजूषा मन ने कहा…

बहुत सुंदर हाइबन कमला जी

बधाई

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

बहुत अच्छा हाइबन है कमला जी...| एक उम्र के बाद कई अनजाने डर मन में जड़ जमा के बैठ जाते हैं...जाने कहाँ-कहाँ की घटनाओं से इंसान खुद को जोड़ के और भी भयभीत हो जाता है |
हार्दिक बधाई...|

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

Bahut bhavpurn haiban meri shubhkamnayen

Dr.Purnima Rai ने कहा…

हृदयस्पर्शी!!