मंगलवार, 23 जून 2020

918-पिता

      
पर्वत से बहता मीठा झरना

 अनिता ललित
    
पिता! –इस शब्द में ही घने पेड़ की छाँव का एहसास होता है! एक ऐसा पेड़, जो सर्दी-गर्मी, लू-धूप-आँधी-तूफ़ान-बरसात, मौसम के हर तेवर को सहते हुए, अडिग खड़ा रहकर, अपने साये में अपने परिवार को समेटे रहता है, उन्हें हर मुसीबत से बचाता है! बाहर से दिखने में कठोर मगर भीतर से एकदम कोमल –जैसे विराट पर्वत से बहता हुआ झरना, जैसे ठोस नारियल से निकला मीठा पानी! –बस इतनी सी ही होती है ‘पिता की कहानी’!
      जिस तरह माँ, अपनी जी-जान न्योछावर करके, घर का मोर्चा संभाले रहती है, उसी तरह पिता, बाहरी दुनिया से तारतम्य बिठाकर, हर ऊँच-नीच को झेलकर, अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं, उन्हें सुरक्षा देते हैं! बच्चों या परिवार पर कोई आफ़त आए, उसके पहले ही पिता ढाल बनकर उसे अपने ऊपर ले लेते हैं! वह बच्चों को इस कपटभरी दुनिया से निपटने के तैयार करते हैं! बच्चों के सिर पर पिता का हाथ होने भर से ही बच्चों में असीम शक्ति एवं आत्मविश्वास का संचार होता है तथा उनका व्यक्त्तित्व निखर के सामने आता है! पिता-विहीन बच्चों का बचपन और मासूमियत कठिन हालात के धरातल से टकराकर खो जाते हैं! उनको कई तरह के मानसिक व शारीरिक कष्टों का सामना करना पड़ता है, जिसका सीधा प्रभाव उनके व्यक्तित्व पर पड़ता है!
     माँ का समय तो बच्चों के साथ प्यार-दुलार में हँस-बोलकर कट जाता है, परन्तु स्वार्थी दुनिया के बीच रहकर काम करते-करते, अक्सर पिता का स्वभाव कड़क, और व्यव्हार रूख़ा हो जाता है! इसके अतिरिक्त, माँ के लाड़-प्यार से बच्चे कहीं बिगड़ न जाएँ, इसलिए घर में अनुशासन बनाये रखने की ज़िम्मेदारी भी अमूमन पिता ही निभाते हैं! जिसके परिणामस्वरूप, कई बार डर के कारण, बच्चे, पिता से एक भावनात्मक दूरी बना लेते हैं! पिता के पास तो बच्चों के साथ खेलने-दुलारने का वक़्त भी नहीं होता! वे तो अपने बच्चों के लिए ऐशो-आराम के साधन जुटाने की धुन में स्वयं को ही बिसरा देते हैं! बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा देना, उनकी इच्छाओं एवं ज़रूरतों को पूरा करना, उन्हें उनके पैरों पर खड़ा करना और फिर धूमधाम से उनका विवाह कर देना –इन्हीं सपनों को पूरा करने की जद्दोजहद में, पिता अपने जीवन के सभी सुखों को तिलांजलि दे देते हैं! जब तक उनके ये सपने पूरे होते हैं, तब तक उनके शरीर के पुर्ज़े घिस चुके होते हैं व बच्चे उस घोंसले से फुर्र हो चुके होते हैं! –आख़िर उन्हें भी तो अपने आशियाने का निर्माण करना होता है! अंत में उनका साथ निबाहने को रह जाती है -थकी-हारी उनकी पत्नी, जो स्वयं अब तक अधेड़ावस्था की कई बीमारियों से ग्रसित हो चुकी होती है! बाहर की दुनिया से अब उनके तार कट चुके होते हैं, और अब, जब उन्हें सहारे की आवश्यकता होती है, तो उनकी धुँधला चुकी आँखों पर वक़्त का मोटा चश्मा व हाथ में छड़ी आ चुकी होती है –परन्तु आसपास कोई नहीं होता! ऊपर से कभी सख्त़-मिज़ाज दिखने वाले पिता, ढलती उम्र के इस मोड़ पर बहुत बेबस और बेसहारा हो जाते हैं! वे माँ की तरह आँसू बहाकर या दिल के जज़्बात को शब्दों में पिरोकर, ज़बान से कुछ नहीं कहते मगर उनके सीने में भी ममताभरा दिल होता है, जो किसी को दिखाई तो नहीं देता, मगर अपने बच्चों के सानिध्य के लिए बेहद तरसता है!
        जिन कँधों पर उसका बचपन पला, जिन बाँहों ने उसे झूला झुलाया, अपने उस जन्मदाता, उस पालनहार का ऋण, कोई औलाद पूरा तो कभी नहीं चुका सकती, मगर कम से कम इतना तो कर ही सकती है कि ज़िन्दगी के आख़िरी पड़ाव पर उन्हें अकेलेपन और अवसाद से जूझने के लिए कभी न छोड़े!
बहुत  ख़ुशनसीब होती हैं वे औलादें जिन्हें स्वयं अपने पिता एवं माँ की आँखें और छड़ी बनने का सौभाग्य प्राप्त होता है!

घनी है छाँव
पिता के कन्धों पर
बच्चों का गाँव!

बनके देखो
कभी छड़ी औ चश्मा -
सुकूँ की ठाँव!
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16 टिप्‍पणियां:

Dr. Purva Sharma ने कहा…

बहुत ही सुंदर हाइबन.... पिता सच में ऐसे ही होते हैं... एक घने पेड़ की छाँव जैसा ही अनुभव होता है उनके पास |

हार्दिक शुभकामनाएँ अनिता जी

शिवजी श्रीवास्तव ने कहा…

सचमुच पिता पर्वत से बहते मीठे झरने की तरह होते हैं।भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति का सुंदर हाइबन।बधाई अनिता जी।

dr.surangma yadav ने कहा…

सचमुच पिता के प्यार-दुलार और त्याग का कोई मूल्य नहीं है, हर संतान का उत्तरदायित्व है इसे महसूस करे। सुन्दर सृजन के लिए बहुत-बहुत बधाई ।

प्रीति अग्रवाल ने कहा…

बहुत सुंदर और भावपूर्ण हाइबन , आपको बधाई अनिता जी, पिता सचमुच नारियल की तरह बाहर से कड़क और अंदर से नरम होते हैं!

Krishna ने कहा…

बहुत सुंदर भावपूर्ण हाइबन.... अनिता जी बहुत बधाई।

सविता अग्रवाल 'सवि' ने कहा…

अनिता जी पिता की अहम भूमिका को आपने इस हाइबन में बखूबी वर्वित किया है |हार्दिक बधाई |

Ramesh Kumar Soni ने कहा…

अनिता जी बधाई । हाइबन विधा में भी आपके लेखनी की पैनी धार दिख रही है , सुंदर ।

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

सराहना एवं प्रोत्साहन के लिए आप सभी का हृदयतल से धन्यवाद!
मेरे हाइबन को यहाँ स्थान देने हेतु आदरणीय भैया जी एवं प्रिय बहन हरदीप जी का हार्दिक आभार!

~सादर
अनिता ललित

Vibha Rashmi ने कहा…

पिता की महिमा का बखान करता प्यारा हाइबन । हाइबन के दोनों हाइकु सार्थक ।बधाई लो प्रिय अनिता ललित ।

Sudershan Ratnakar ने कहा…

पर्वत से बहता मीठा पानी,पिता के लिए सुंदर और सटीक उपमा। जैसे झरना ऊँचाई से गिर कर ,कष्ट सह कर प्यास बुझाता पिता भी तो वही करते हैं। बहुत बढ़िया ।बधाई एवं अशेष शुभकामनाएँ अनिता।

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

हार्दिक आभार आ. सुदर्शन दीदी जी एवं विभा दी...आपके स्नेहमयी प्रोत्साहन एवं प्रशंसा के लिए!

~सादर
अनिता ललित

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

पिता की महिमा बताता सुन्दर हाइबन...पिता के काँधे गाँव, वाह!!
बनके देखो कभी छड़ी औ चश्मा - सुकूँ की ठाँव!...बहुत खूब !
अनिता जी को हार्दिक बधाई! मंच का आभार !

सदा ने कहा…

कितने सहज सरल शब्दों में पिता को आपने सबके समक्ष, प्रत्यक्ष कर दिया है ...
ये शब्द -
घनी है छाँव
पिता के कन्धों पर
बच्चों का गाँव!
कितनी सच्चे हैं ये शब्द, जिन्होंने समेट लिया है स्वयं में
पिता का विशाल व्यक्तित्व, अद्भुद लेखन शैली !!
बहुत बहुत बधाई एवम शुभकामनाएं 💐💐

Jyotsana pradeep ने कहा…

पिता पर लिखा कितना प्यारा और भावपूर्ण हाइबन....प्रिय सखी अनिता जी, दिल से बधाई आपको !

बेनामी ने कहा…

स्कूल व कक्षा के कमरे के भीतर रखी वस्तुएँ बच्चों के बिना उदास हैं । इस मानवेतर संवेदना को बखूबी हाइबन में उभारा गया है । पूर्वा बधाई आपको ।
विभा रश्मि

बेनामी ने कहा…

अनिता जी हार्दिक बधाई । आपका पिता पर लिखा भावपूर्ण व सुन्दर हाइबन पढ़ा । हार्दिक बधाई लें ।
विभा रश्मि