1-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
1
बहे समीर
उड़ें दु:ख-बदरा
तन, मन, पुलकें
चमकें नैन
बीती दुख की रैन
मुकुलित कजरा।
(18 अक्तूबर 20)
2
छू गए मन
अनुराग-वेष्ठित
मधुमय वचन
मन आँगन
झरे हरसिंगार
हँसे जड़ चेतन।
-0-
चलते ही रहना
- डॉ. जेन्नी शबनम
जीवन जैसे
अनसुलझी हुई
कोई पहेली
उलझाती है जैसे
भूल भूलैया,
कदम-कदम पे
पसरे काँटें
लहुलुहान पाँव
मन में छाले
फिर भी है बढना
चलते जाना,
जब तक हैं साँसें
तब तक है
दुनिया का तमाशा
खेल दिखाए
संग-संग खेलना
सब सहना,
इससे पार जाना
संभव नहीं
सारी कोशिशें व्यर्थ
कठिन राह
मन है असमर्थ,
मगर हार
कभी मानना नहीं
थकना नहीं
कभी रुकना नहीं
झुकना नहीं
चलते ही रहना
न घबराना
जीवन ऐसे जीना
जैसे तोहफ़ा
कुदरत से मिला
बड़े प्यार से
बड़ी हिफाज़त से
सँभाल कर जीना !
-0-
12 टिप्पणियां:
सुन्दर सृजन
सुन्दर
सुन्दर
बहुत भावपूर्ण सेदोका सुंदर चोका।आप दोनों को बधाई।
बेहद भावपूर्ण एवं सुंदर अभिव्यक्ति।
आप दोनों को हार्दिक बधाई आदरणीय।
सादर।
बहुत सुन्दर सृजन !
आदरणीय भैया जी और जेन्नी जी को हार्दिक बधाई !!
आदरणीय काम्बोज भाई के दोनों सेदोका उत्तम और भावपूर्ण हैं. बहुत बहुत बधाई.
मेरे चोका को आप सभी की सराहना मिली, हृदय से धन्यवाद.
दोनों रचनाएँ बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण
कम्बोज सर एवं जेन्नी जी को हार्दिक नमन एवं शुभकामनाएँ
बहुत सुंदर रचनाएँ।
आ. भाई काम्बिज जी तथा जेन्नी जी को हार्दिक बधाई।
एक अच्छे सृजन के लिए आप दोनों को हार्दिक बधाई ।
अत्यंत प्रभावी सेदोका,आदरणीय कम्बोज साहब के।
बहुत सुंदर और भावपूर्ण रचनाएँ, आदरणीय भाई साहब एवम जेन्नी जी को ढेरों बधाई!
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