रविवार, 18 अक्तूबर 2020

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1-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

1

बहे समीर

उड़ें दु:-बदरा

तन, मन, पुलकें

चमकें नैन

बीती दुख की रैन

मुकुलित कजरा।

(18 अक्तूबर 20)

2

छू गए मन

अनुराग-वेष्ठित

मधुमय वचन

मन आँगन

झरे हरसिंगार

हँसे जड़ चेतन

 (15 अक्तूबर 20)

-0-

चलते ही रहना

- डॉ. जेन्नी शबनम 


जीवन जैसे  

अनसुलझी हुई 

कोई पहेली 

उलझाती है जैसे

भूल भूलैया,

कदम-कदम पे 

पसरे काँटें  

लहुलुहान पाँव 

मन में छाले 

फिर भी है बढना  

चलते जाना, 

जब तक हैं साँसें

तब तक है 

दुनिया का तमाशा 

खेल दिखाए 

संग-संग खेलना 

सब सहना, 

इससे पार जाना 

संभव नहीं 

सारी कोशिशें व्यर्थ

कठिन राह 

मन है असमर्थ, 

मगर हार 

कभी मानना नहीं 

थकना नहीं 

कभी रुकना नहीं 

झुकना नहीं

चलते ही रहना 

न घबराना 

जीवन ऐसे जीना 

जैसे तोहफ़ा

कुदरत से मिला 

बड़े प्यार से 

बड़ी हिफाज़त से 

सँभाल कर जीना !

-0-

12 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर सृजन

पूनम सैनी ने कहा…

सुन्दर

पूनम सैनी ने कहा…

सुन्दर

शिवजी श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत भावपूर्ण सेदोका सुंदर चोका।आप दोनों को बधाई।

बेनामी ने कहा…

बेहद भावपूर्ण एवं सुंदर अभिव्यक्ति।
आप दोनों को हार्दिक बधाई आदरणीय।
सादर।

Jyotsana pradeep ने कहा…

बहुत सुन्दर सृजन !
आदरणीय भैया जी और जेन्नी जी को हार्दिक बधाई !!

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

आदरणीय काम्बोज भाई के दोनों सेदोका उत्तम और भावपूर्ण हैं. बहुत बहुत बधाई.
मेरे चोका को आप सभी की सराहना मिली, हृदय से धन्यवाद.

Dr. Purva Sharma ने कहा…

दोनों रचनाएँ बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण
कम्बोज सर एवं जेन्नी जी को हार्दिक नमन एवं शुभकामनाएँ

Krishna ने कहा…

बहुत सुंदर रचनाएँ।
आ. भाई काम्बिज जी तथा जेन्नी जी को हार्दिक बधाई।


Ramesh Kumar Soni ने कहा…

एक अच्छे सृजन के लिए आप दोनों को हार्दिक बधाई ।

Dr Mahima Shrivastava ने कहा…

अत्यंत प्रभावी सेदोका,आदरणीय कम्बोज साहब के।

प्रीति अग्रवाल ने कहा…

बहुत सुंदर और भावपूर्ण रचनाएँ, आदरणीय भाई साहब एवम जेन्नी जी को ढेरों बधाई!