सुदर्शन रत्नाकर
ऊँची मीनारें
कंकरीट के घर
भावहीन चेहरे
अंधी दौड़ में
भाग रहे हैं लोग
नियति के मोहरे।
2
मौसम बीता
जीवन- साँझ हुई
ख़त्म हुईं बहारें
मन अकेला
ढूँढ़ता खोए मोती
बिखरे जो धूल में
3
बढ़ रही हैं
तेरी -मेरी दूरियाँ
कैसी मजबूरियाँ
खेल रहे हैं
अपने विश्वास से
वक़्त की बिसात पे।
4
ये जो यादें हैं
निकलती नहीं हैं
दिल की दीवार से
दर्द हैं देतीं
चुभती हैं कील -सी
दिन और रात में।
5
काँच से रिश्ते
ठोकर लगे टूटें
सम्भालने हैं होते
नासमझी से
भावना में बहते
नियन्त्रण तोड़ते।
6
बहने लगी
शरारती हवा जो
उड़ाकर ले आई
दिल में मेरे
चुपके से चुरा के
यादों की चूनर वो।
7
दे दिया रास्ता
झुकाते हुए शीश
हो गई समर्पित
हरी दूब थी
उफ़ तक नहीं की
लुटा दिया जीवन।
8
जब टूटता
भरोसा किसी का भी
बिखरता जीवन
विडम्बना है
तार नहीं जुड़ते
टूट जाता है मन।
9
ज़रा देखो तो
खिलखिलाती कली
रंगों साथ खेलती
कहती है क्या
जीवन चार दिन
अंत होता मरण।
10
झूठे सपने
क्षणिक सुख देते
पीड़ादायक होते
मन बींधता
मछली सा तड़पे
राह नहीं है पाता।
-0-
सुदर्शन रत्नाकर
ई-29,नेहरू
ग्राँऊड
फ़रीदाबाद-121001
मोबाइल-9811251135
10 टिप्पणियां:
सुंदर सेदोका , बधाई एवं शुभकामनाएँ ।
अति सुंदर ।
अति सुंदर।
विविध भावों की अभिव्यक्ति करते सुंदर एवम प्रभावी सेदोका।बधाई सुदर्शन रत्नाकर जी।
सुंदर भावपूर्ण विविध रंगों को प्रस्तुत करते सेदोका, हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें
पूर्वा शर्मा जी,शिवजी श्रीवास्तव जी,महिमा जी,रमेश कुमार सोनी जी प्रतिक्रिया देकर प्रोत्साहित करने के लिए आप सब का हार्दिक आभार.।
आदरणीया सुदर्शन दी, जितनी बार पढ़े उतनी बार और अधिक सुंदर लगे....बेहतरीन सेदोका के लिए आपको ढेरों बधाई!!
आभार प्रीति जी।
बहुत ही सुन्दर सृजन आदरणीया दीदी,आपको हृदय-तल से बधाई !
सुन्दर सेदोका के लिए बहुत बधाई
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