रविवार, 22 दिसंबर 2024

1204

 कृष्णा वर्मा


1

भोर की बेला 

ओस चादर ओढ़े 

भीगा प्रभात 

धूप देखके नाची 

किरणों की बारात। 

2

मेघ गरजे

धूप ने किया पर्दा 

डरी- सहमी

हवाओं का तर्जन

मिटीं परछाइयाँ।

3

बहें हवाएँ 

भले बन आँधियाँ 

करें जतन 

घिरे हुए बादल 

फिर ना छा सकेंगे। 

4

देखोगे तारे 

तो मिलेगा सुकून

किसी को तारे 

दिखाने की सोची तो 

घेरेंगी बेचैनियाँ। 

 5

लग जाए जो

रिश्तों की पंचायत 

रिस जाते हैं 

फिर नहीं निभते 

दरके हुए रिश्ते।

6

भले हो बड़ा 

पहुँचा फ़नकार 

यादों के नक़्श

नहीं मिटा सकता 

हाथ की सफ़ाई से।

7

अंतस्थल का

मर गया सौहार्द

बची हैं बातें 

नेह है नदारद 

हास न परिहास। 

8

सुर्ख़ आँखों से

गिरते आँसुओं की

ख़ामोशियों में

जी भरकर रोईं

दिल की उदासियाँ।

9

मौन हो गईं

मेरी सब शोख़ियाँ

तेरे जाने ने

जड़ दिया है ताला

मेरे गुमान पर।

10

तुझे पाने को

गुज़रे किस दौर

जाने कितनी

लड़ी हैं लड़ाइयाँ

सही कठिनाइयाँ।

11

बदला दौर 

बेमानी बातें ना

हँसी ख़ज़ाने 

रुँधे गले में फँसीं 

वो स्मृतियाँ पुरानी। 

12

बुझ न सकी 

जो दिल की लगी 

फाँस- सी चुभी

उत्ताप की आग में 

हो गए धुँआँ-धुँआँ 

13

रुकीं गर्दिशें 

न बदला ज़माना 

सूखते पेड़

पतझड़ में पंछी 

बदल लें ठिकाना। 

14

दिली फ़रेब 

मन की दीवारों को 

करते पक्की 

देके धोखा दूजों को 

करें लोग तरक्की।

15

क्षणभंगुर 

लिखे जीवन पन्ने  

फिर क्यों डरे  

कर इश्क बसंती 

और जी- जीभरके।

16

बदलें ग्रह 

लिखें नई लक़ीरें

नया सितारा 

कहीं उकेरे सुख 

कहीं गर्म अंगारा। 

17

बड़ी उद्दाम 

होती आँख की आग 

प्रेम जलाए 

करे घरों को राख 

तीली बे सुलगाए।

18

लुटे भरोसा 

फँस जाते है शेर 

कुत्तों के जाल 

अपने हों शामिल 

जो दुश्मन की चाल।

19

दरवाज़े की 

साँकल है उदास 

तुम क्या गए 

तरस मरा पट 

थपथपाहट को। 

20

छोड़ गया वो 

खारे समंदर को 

आँखों किनारे 

घुल गया काजल 

खा-खा दर्द पछाड़ें।

21

अंतिम सीढ़ी 

हम आख़िरी पीढ़ी 

जन्मेंगे कभी 

हम जैसे अब ना

हम सा निबाहेंगे। 

22

मजबूती भी 

एक हद तक ही 

होती है अच्छी 

जो दृढ़ हुए ज़्यादा 

हो जाओगे पत्थर। 

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9 टिप्‍पणियां:

प्रीति अग्रवाल ने कहा…

सुंदर सृजन! बधाई एवं शुभकामनाएँ कृष्णा जी।

शिवजी श्रीवास्तव ने कहा…

कोमल संवेदना, मानव नियति और युग के अन्तर्विरोधों को चित्रित करते सुन्दर ताँका, हार्दिक बधाई कृष्णा जी।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह

Rashmi Vibha Tripathi ने कहा…

गहन भाव बोध के उत्कृष्ट ताँका।
हार्दिक बधाई आदरणीया कृष्णा दीदी को।

सादर

बेनामी ने कहा…

वाह! इतने सुंदर ताँका।हार्दिक बधाई कृष्णा वर्मा जी। सुदर्शन रत्नाकर

Sushila Sheel Rana ने कहा…

सभी ताँका बहुत ही भावपूर्ण मन को छूते हुए उत्कृष्ट सृजन।

दरवाज़े की
साँकल है उदास
तुम क्या गए
तरस मरा पट
थपथपाहट को

इस ताँके में तरस मारा पट का जवाब नहीं

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

सभी ताँका उत्तम एवं भावपूर्ण। बधाई कृष्णा जी

dr.surangma yadav ने कहा…

लग जाए जो
रिश्तों की पंचायत .....
सभी ताँका बहुत सुंदर। हार्दिक बधाई कृष्णा जी।

surbhidagar001@gmail.com ने कहा…

बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने।
हार्दिक बधाई आपको।