सेदोका— रश्मि विभा त्रिपाठी
1
क्या बतलाऊँ
मेरे संग अपना
क्या रिश्ता जोड़ गए
मिलके गले
मेरी रूह में तुम
खुद को छोड़ गए!
2
छिपकरके
मैं तुम्हारी बाहों में
बेफिक्र बड़ी होती
महफ़ूज यूँ
तुमने रक्खा मुझे
ज्यों सीप में हो मोती।
3
प्यार तुम्हारा
जबसे मुझे मिला
मेरा जी हर्षाया है
कल्पवृक्ष- से
तुम हो मेरे मीत
जो चाहा, सो पाया है।
4
मेरे लिए तो
है ये प्यार तुम्हारा
पूजा सबसे बड़ी
दौड़ तुम्हारी
छाती से मैं लिपटी
तो साँस चल पड़ी है।
5
मैं क्या कहूँ कि
सारे रिश्ते नाते ये
कौड़ियों में बिके हैं
एक तुम्हारे
निश्चल नेह पर
मेरे प्राण टिके हैं।
6
रख दिए थे
पलकों पे अधर
तुमने दुलार से
आँखों में अब
खिल उठ्ठे सपने
ये हरसिंगार- से।
7
प्राणप्रिया के
द्वारे जब भी आऊँ
झोली भरी ही पाऊँ
नेह- निधि ये
कहाँ धरूँ- उठाऊँ
फूली नहीं समाऊँ।
8
किसी भी पल
जीना जो हो मुहाल
कभी होऊँ निढाल
वे प्राणप्रिया
बनके मेरी ढाल
उबारें आ तत्काल।
9
प्राणप्रिया को
अहो! शशिशेखर
तुम ऐसा दो वर
मन- गंगा में
उठे सुख- लहर
उल्लास से दे भर।
10
किस रीति से
हो व्यंजना विशद
स्नेह ये अनहद
भाषा से परे
अनुभूति सुखद
अहो! मैं गद्गद।
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6 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर सेदोका रचे हैं रश्मि जी, बधाई!
साहित्य सृजन के लिए जो सहज़ दार्शनिक दृष्टि होनी चाहिए, वह रश्मि जी आपमें है, तभी इतना सुन्दर सृजन करती हो। इस दृष्टि को बनाए रखना,हार्दिक शुभकामनाएँ।
गहन अर्थव्यंजक, नवीन उपमानो से युक्त सुन्दर सेदोका, बधाई रश्मि जी
बहुत सुंदर वाह
निशब्द। बहुत सुंदर सेदोका। हार्दिक बधाई।सुदर्शन रत्नाकर
सुंदर सेदोका, रचनाओं में रूहदारी उल्लेखनीय है।
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