कृष्णा वर्मा
शब्द कमाल
हिलें ना डुलें पर
चलते ऐसी चाल
बे हथियार
सहज कर देते
जुदा रिश्तों से प्यार।
मरी है शर्म
कैसे करें बयान
सूखा आँख का पानी
ढोएं माँ-बाप
ज़िम्मेदारियों का बोझ
बच्चों
की
मनमानी।
कैसा ज़माना
बदले हैं अपने
मरे हैं अहसास
पीड़ा ना दर्द
रिश्तों की टूटन क्यों
चुभती नहीं आज।
होंठों पे ताला
घुटा-घुटा जीवन
जीता आज ज़माना
पहचाना भी
लगे अब अंजाना
मन हुआ सयाना।
खोया है कहाँ
ढूँढें दिशा-देश में
अपना बचपन
जिस गली में
फुर्सत जैसे ऊँचे
थे अपने मकान।
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2 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (24-07-2017) को "क्यों माना जाए तीन तलाक" (चर्चा अंक 2676) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
samaaj kii dasha aur disha ko sahaj vyakt kartee bahut sundar sedoka rachanaayen !!
haardik badhaaii didi !!
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