गुरुवार, 12 अक्तूबर 2023

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विडम्बना

प्रीति अग्रवाल

 

 चाह अगर

सुख की अनुभूति

उतर जाओ

दुःख की तलहटी

मौन-गरिमा

जानना 'गर चाहो

शोर के मध्य

कुछ वक्त बिताओ

जीवन साथी

परखना जो चाहो

विरह-अग्नि

दूरियाँ आज़माओ

विचित्र- सी है

जीवन- विडंबना

जो कुछ चाहो

उससे विपरीत

चखते जाओ

प्रकृति के नियम

रचे किसने

समय न गँवाओ

सिर झुकाते जाओ!!

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9 टिप्‍पणियां:

भीकम सिंह ने कहा…

बहुत सुन्दर चोका, हार्दिक शुभकामनाएँ ।

Sudershan Ratnakar ने कहा…

बहुत बढ़िया। हार्दिक बधाई।

surbhidagar001@gmail.com ने कहा…

बहुत ही सुन्दर चौंका हार्दिक बधाई।
सादर
सुरभि डागर

बेनामी ने कहा…

बहुत सुंदर, सही संदेश देता चोका!

~सादर
अनिता ललित

Krishna ने कहा…

बहुत सुन्दर चोका... हार्दिक बधाई प्रीति।

बेनामी ने कहा…

सुंदर चोका प्रीति । अंत में ठीक कहा बस सर झुकाते जाओ। बधाई हो। अनेक शुभकामनाएँ। सविता अग्रवाल “सवि”

प्रीति अग्रवाल ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
प्रीति अग्रवाल ने कहा…

पत्रिका में स्थान देने के लिए आदरणीय भाई साहब का हार्दिक आभार!
भीकम सिंह जी, सुदर्शन दी, सुरभि जी, अनिता जी, कृष्णा जी एवं सविता जी , आपकी स्नेहिल टिप्पणियां मेरी लेखनी को बल प्रदान करती हैं आप सभी का हार्दिक धन्यवाद।,

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

एक अच्छे चोका के लिए मेरी बधाई