रविवार, 23 जून 2024

1183-प्रेम

भीकम सिंह


1

आलिंगन में

प्रेम की स्मृतियाँ हैं

कई साल की

तुहिन झर रहा

रात मध्यकाल की।

2

घुप्प  अँधेरा

कहीं ना कोई तारा

ऐसा है प्यार

मेरा और तुम्हारा

कैसे होगा गुज़ारा।

3

तुम हू- ब- हू

ख़्वाबों में उतरती

लेके भादों-सा

ऑंखें तब ढूँढती

वो, सावन यादों का।

4

मेरे ही लिए

तुम खिलखिलाओ

आओ निकट

देखो, प्रेम की नदी

छोड़ रही है तट।

5

तुम्हारा प्रेम

वासना पर टिका

कित्ती रातों में

अनकहा ही रहा

प्रेम, उन रातों में।

-0-

 

10 टिप्‍पणियां:

शिवजी श्रीवास्तव ने कहा…

वाह,सभी तांका बेहतरीन।बधाई।

बेनामी ने कहा…

अति सुन्दर ताँका । हार्दिक बधाई आपको । सुदर्शन रत्नाकर

Krishna ने कहा…

बेहतरीन ताँका...हार्दिक बधाई।

Rashmi Vibha Tripathi ने कहा…

बहुत सुंदर ताँका।
हार्दिक बधाई आदरणीय भीकम सिंह जी को।

सादर

anjun20 ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव

surbhidagar001@gmail.com ने कहा…

बहुत ही सुन्दर भाव

Ramesh Kumar Soni ने कहा…

सुंदर ताँका-हार्दिक बधाई।
प्रेम बरस रहा है।

भीकम सिंह ने कहा…

मेरे ताॅंका प्रकाशित करने के लिए सम्पादक द्वय का हार्दिक धन्यवाद और खूबसूरत टिप्पणियों से मेरा मन प्रसन्न करने के लिए आप सभी का हार्दिक आभार।

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

सभी ताँका बहुत मनभावन। हार्दिक बधाई भीकम सिंह जी।

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

मनभावन ताँका के लिए आदरणीय भीकम जी को बहुत बधाई