1-चोका
ज्योत्स्ना प्रदीप
ध्वनि
शंख-सी
आँखें
मोर -पंख -सी
एक छवि
की !
कल्पना
हो कवि की,
शुभ
-सौन्दर्य
मूक चित्रकार
का ।
आकार लिये,
उस निराकार
का ।
सुशोभित
हो
पीत
-परिधान में
मुस्कान
मानो
मोती भरा-कटोरा
फैला ब्राह्माण्ड
चहुँ
ओर उजले
गीता का
ज्ञान
तेरी-
बाँसुरी स्वर !
या शंख-
नाद
है समीर
समेटे
आज भी
कही
एक गोपी
ढूँढ़ती
वह विटप
जिसके
तले कान्हा
गैया
के पास
आज भी
अधलेटे
सुने जो
सुर
अनादि
-वंशी -तान
असीम
-भाग्यवान
-0-
2- माहिया
डॉ सरस्वती माथुर
1
तुमको जब से खोया
मनवा जाने क्यों
बादल बनकर रोया l
2
मन की जब नाव
चली
पुरवा -सी यादें
साजन के गाँव चली l
3
चुपके-चुपके
आया
चंदा बन मन में
मेरा साजन छाया l
4
नैना तोसे लागे
साजन की
खातिर
हम रातों को जागे l
-0-
9 टिप्पणियां:
अति सुन्दर
ज्योत्स्ना प्रदीप जी... बहुत सुन्दर कल्पना ! मनमोहक छवि ! :-)
सरस्वती जी... सुन्दर माहिया
मन की जब नाव चली
पुरवा -सी यादें
साजन के गाँव चली l- सबसे अच्छा लगा !
~सादर
अनिता ललित
सभी रचनाएं बहुत सुन्दर एवं मन भावन हैं। ज्योत्स्ना प्रदीप जी और डॉ सरस्वती माथुर जी, आप दोनों को हार्दिक बधाई !
ज्योत्स्ना जी के चोका में अद्भुत सौन्दर्य निहित है, बधाई.
सभी माहिया बहुत सुन्दर, सरस्वती जी को बधाई.
चोका और माहिया का कथ्य - तथ्य की उत्कृष्ट प्रस्तुति
आप दोनों को बधाई
bjyotsna ji apka choka aur saraswati ji apka mahiya b ahut achha likha hai . ap dono ko badhai.
pushpa mehra.
सुन्दर शब्दों में बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है ज्योत्स्ना जी ..अनुपम रचना के लिए बधाई !
सुन्दर ,मोहक माहिया सरस्वती जी ..बहुत बधाई
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
aap sabhi ka dil se aabhaar ...sarahna ke liye...
प्यारे से चोका और मनभावन माहिया के लिए आप दोनों को ही हार्दिक बधाई...|
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