हाइबन-
1-नादाँ हवाएँ
कभी सहसा बादल घिरते हैं, काली घटाएँ उमड़कर आती हैं। मोटी-मोटी बूँदें टप-टप का संगीत बनाती हैं। भीगी मिट्टी की सौंधी महक़ भीतर तक भरने को साँस इतनी गहरी हो जाती है कि आँखें स्वतः मूँद जाती हैं। बावरा मन पहले टप-टप के संगीत में भीगता है फिर सौंधी महक़ में। तन में एक तरंग उठती है झूमकर भीगने की, उसी तरंग में लबों पर कोई बरसाती गीत आ विराजता है। बरसों के बिछड़े पल क़रीब आने को मचलते हैं। कोई भीगी सी स्मृति सरसराती हवा में बिखर जाती है। तभी निगोड़ी हवा को जाने क्या सूझती है कि बादलों को हाँक ले जाती है। उमगी इच्छाओं का हिलोर फिर तलछटी पर जा बैठता है।
नादाँ हवाएँ
साथ उड़ा ले गई
काली घटाएँ।
2-सुधियाँसाथ उड़ा ले गई
काली घटाएँ।
अपने शहर में अरसे बाद आना अपनी स्मृतियों की हर शय पर जमी मिट्टी की पर्तें झाड़ना है। चाय की गुमटी, खोमचे वाला, पार्क की बेंच पर बैठे बुजुर्ग, फेरी वालों की आवाज़ें सब कुछ कितने समय बाद भी मन में वैसा का वैसा ही बना रहता है। एक चित्र सा जिसमें सभी चीज़ें चलती रहती हैं पर बदलती नहीं। चलती हुई चीज़ों की स्थायी स्थिरता। बरसों बाद भी वो चेहरे कभी बूढ़े नहीं होते। पुरानी परिचित गलियाँ, आइसक्रीम के ठेले, बसों के हॉर्न ,जाने किन किन चीज़ों से बातें निकल निकल आती हैं। एक पल पहले जो बात ख़ुशी बन याद आई थी अगले ही पल ने उसका अनुवाद उदासी में कर दिया।
वही गलियाँ
थाम हथेली चलीं
साथ सुधियाँ।
-०-
3- गौरव
रात की कालिख़ पोंछ प्राची दिशा से स्वर्ण रश्मियों की सवारी नित्य आ पहुँचती है जैसे कोई प्रशिक्षण पाया हुआ सैनिक कभी अनुशासन नहीं भूलता। कोने-कोने से तम के अवशेष बुहार कर उजाले की विविधरंगी सीनरी सज जाती है। उजाले के कई रंग होते हैं। अँधेरे का रंग सिर्फ़ अँधेरा ही होता है। जागते ही भोर निर्मल ओस से अपना मुँह धोती है। ओस कभी बासी नहीं हो सकती। उसे रोज़ बनना होता है। ऐसा कभी नहीं हो सकता कि कल की ओस से आज की भोर मुँह धोए। भोर हमेशा नई होती है। दोपहर कल की दोपहर की तरह अलसाई हो सकती है, शाम कल की शाम की तरह उदास, रात कल की रात की तरह अँधेरी, पर भोर हमेशा नई होगी। जैसे खिलखिलाहट हमेशा नई होती है। तो भोर और ओस दोनों एक जैसी होती हैं भले ही भोर के आने पर ओस मिट जाए। वही उसकी सार्थकता है। सार्थक होकर मिटने में मिटने का रंज शामिल नहीं होता। यहाँ मिट जाना ही उसका गौरव है।
ओस से धोए
भोर अपना मुख
सरसे सुख।
-०-
26 टिप्पणियां:
all are best
बहुत सुंदर सरस हाइबन...अनिता मण्डा जी हार्दिक बधाई।
Bahut sundar bahut bahut badhai..
सुंदर भावपूर्ण हाइबन अनिता, बधाई।
भावना सक्सैना
तीनों ही हाइबन/ हाइकु बहुत ही खूबसूरत । बधाई।
तीनों बहुत ही खूबसूरत हाइगा/ हाइकु। बधाई। सुरेन्द्र वर्मा ।
स्नेह व प्रोत्साहन के लिए मैं आभारी हूँ।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26.04.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2952 में दिया जाएगा
धन्यवाद
सुन्दर भाषा में बहुत सरस , मोहक हाइबन !
बहुत - बहुत बधाई !!
तीनों हाइबन बहुत भावमय हैं ।दिल से निकले , अहसास से भरे । उससे संदर्भित हाइकु भी सटीक बैठे हैं । बधाई लो अनिता ।
हाईबन और हाइकू में क्या अंतर होता है... अंजन हूँ.
लेकिन जो रचना आप ने रची है वो बाकमाल है.
हर एक रचना कोई न कोई तस्वीर बनती है..और ऐसी तस्वीर जो हर एक के जीवन में कभी न कभी वास्तविक रूप लेती है.
आभार
जी शुक्रिया इस हौसलाअफ़जाई का। मेरे ख़्याल से अपने सवाल का जवाब भी आपने सवाल में ही लिख दिया है। किसी दृश्य को, भाव को इस तरह शब्द देना कि उसकी तस्वीर उभर आये व उसका सार साथ में हाइकु में हो तो वो हाइबन बनता है। ऐसा मैं अपनी सिमित मति से कह रही हूँ। कुछ त्रुटि रही हो तो साथी बताएँ।
जी आभारी हूँ।
आपका स्नेह अतुलनीय।
आभारी हूँ।
आभार बहुत सारा आपका। यह रचते हुए मुझे बहुत आनन्द मिला, सच में।
अनिता जी हाइबन का एक एक शब्द काव्यमय , सरस और भाव पूर्ण है ।बहुत सुन्दर हैं सभी हाइबन ।हार्दिक बधाई ।
तीनों हाइकु सरस भावपूर्ण हैंबधाई अनिता
आभार जी
आभार दीदी
एक खूबसूरत भाषा शैली के साथ रचे गए इन तीनों बेहतरीन हाइबन के लिए हार्दिक बधाई...|
तीनों हाइबन बहुत सुंदर..सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई ।🙏🙏🌷🌷🌷
तीनो ही हाइबन बहुत ही भावपूर्ण बहुत ही सुंदर
हार्दिक बधाई अनीता जी
बहुत अच्छा लिखती हैं आप
प्रकृति का सारा माधुर्य समेटे आपके तीनों हाइबन बहुत ही सुंदर हैं ,कहीं इच्छाओं और स्मृतियों पर भी अपना वश ना
चलना, कहीं पुरानी चित्रवत आती स्मृतियों से मन का उदास होना - जड़ और चेतन प्रकृति का मन पर प्रभाव -सभी कुछ तो इन तीनों में समाया है, अनीता जी बधाई |
पुष्पा मेहरा
बहुत शुक्रिया
आभार।
शुक्रिया।
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